इंदौर। डायबिटीज के उपचार में काम आ रही दवा ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में भी मददगार साबित हो सकती है। विज्ञानियों और शोधार्थियों के समूह ने यह निष्कर्ष निकाला है। डायबिटीज की दवा के दोहरे फायदे बताने वाले इस शोध को इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, आइआइटी इंदौर और बेलारूस के इंस्टीट्यूट आफ फिजियोलाजी आफ द नेशनल एकेडमी आफ साइंस के शोधार्थियों व प्रोफेसरों ने मिलकर पूरा किया है। शोध के नतीजे को प्रमाणित करते हुए अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल करंट कैंसर ड्रग टारगेट में प्रकाशित किया गया है। दो साल पहले चेक गणराज्य की राजधानी प्राग की चा‌र्ल्स यूनिवर्सिटी से इस शोध की नींव पड़ी थी।

प्रोफेसर परमार के अनुसार डीपीपी-4 ब्रेस्ट कैंसर की वृद्धि, कैंसर के उपचार को अप्रभावी करने के साथ कैंसर सेल के शरीर में ट्रांसफर के लिए भी जिम्मेदार होता है। डायबिटीज की ये दवाएं इस प्रोटीन को रोककर कैंसर के उपचार को असरदार बना देती हैं। इसके साथ ये दवाएं जीएलपी हार्मोन के उत्सर्जन को प्रभावी बना देती हैं। इससे शरीर में ट्यूमर (कैंसर) के लिए प्रतिरोध पैदा होता है। कैंसर स्टेम सेल फैलना रुक जाते हैं। कैंसर के उपचार के कारण बनने वाली स्थिति कैंसर केचेक्सिया (जिसमें शरीर कमजोर हो जाता है) को भी ये दवाएं रोकती हैं। इस तरह ये दवाएं कैंसर के उपचार को प्रभावी बनाती हैं। प्रयोगशाला टेस्ट से यह प्रमाणित हो चुका है। अब क्लिनिकल अध्ययन के आधार पर डायबिटीज की दवाओं को ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में सहयोगी दवाओं के उपयोग की राह खुल सकती है। अन्य तरह के कैंसर पर भी इन दवाओं के असर का परीक्षण किया जा रहा है।

प्रोटीन डायबिटीज को बढ़ाता है और हार्मोन ग्लूकोज की मात्रा को संतुलित करता है। प्रोफेसर परमार के अनुसार 2018 में चा‌र्ल्स यूनिवर्सिटी की फैकल्टी आफ मेडिसिन में जब मैं अध्ययन के लिए पहुंचा था, तभी इस दिशा में शोध की नींव पड़ी थी। भारत आने के बाद टीम ने शोध का काम जारी रखा और अब लैब टेस्ट के नतीजों से परिणाम की पुष्टि हो गई है। इसके बाद ही अध्ययन को जर्नल में प्रकाशन के लिए भेजा गया।

आमतौर पर एक उम्र के बाद व मोटापे या अन्य कारणों से होने वाली टाइप-टू डायबिटीज के उपचार में मरीजों को सिटाग्लिप्टिन, बिल्डाग्लिप्टिन और लिनाग्लिप्टिन या इस ग्रुप की अन्य दवाएं दी जाती हैं। गोलियों के रूप में दी जाने वाली ये दवाएं डायबिटीज को नियंत्रित करती हैं। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के स्कूल आफ बायोटेक्नोलाजी के प्रो. हेमेंद्र सिंह परमार के अनुसार असल में इन दवाओं से डायबिटीज के इलाज को चिकित्सकीय भाषा में इनक्रेटिन बेस्ड थेरेपी कहा जाता है। ये दवाएं शरीर में पाए जाने वाले कुछ खास प्रोटीन (डीपीपी-4) और जीएलपी-वन हार्मोन पर सीधे असर करती हैं।