यमुनानगर। हमेशा कहा जाता है कि हरियाणा के पुरुष बहुत साहसी होते हैं वो चाहे धरती का सीना चीर सोना उगलाना हो या फिर बॉर्डर दुश्मन का सीना छलनी करना हो, हमेशा सबसे आगे और साहसी माने जाते हैं। लेकिन अब हरियाणा की महिलाओं ने भी साबित कर दिया है कि उनमे साहस की कोई कमी नहीं। चाहे मैडल लाने हो या फिर देश की रक्षा सबसे आगे पहुंच जाती हैं लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी महिला के बारे में जो शायद सबसे ज्यादा साहसी है। यह साहसी महिला यमुनानगर की रहने वाली हैं।
यमुनानगर की रहने वाली रानो देवी ने पीजीआई चंडीगढ़ में अपने 45 वर्षीय जीवन साथी को खो दिया। इतना बड़ा पहाड़ टूटने के बाद भी रानो देवी ने हिम्मत नहीं हारी। रानो ने अपने परिवार के साथ चर्चा कर अपने पति मनमोहन सिंह के ‘अंगदान’ का फैसला लिया। आंखों में आंसू लिए पीड़िता ने कहा कि अस्थियां किस काम की…अंगदान कर मेरे पति कहीं तो ‘जिंदा’ रहेंगे। शरीर को राख में बदलने से अच्छा है उनके पति के अंग किसी को नया जीवनदान दें। मैं जिस दर्द से गुजर रही हूं, भगवान ऐसा समय किसी को न दें। इतनी पीड़ा के बावजूद परिवार ऐसा फैसला ले पाया। रानो देवी के इस फैसले से पांच लोगों को नया जीवन दान मिला। रानो ने अपने पिता के निधन पर भी कॉर्निया दान के लिए सहमति दी थी।
बता दें कि पति के ब्रेनडेड घोषित होने पर यमुनानगर की रानो देवी ने जो साहसिक कदम उठाया, उसकी चारों तरफ तारीफ हो रही है। रानो देवी ने अपने पति मनमोहन सिंह के हृदय, लीवर, किडनी और दोनों कॉर्निया को दान करने का फैसला लिया। उनके इस फैसले ने पांच लोगों को नया जीवन दिया। हृदय को छोड़ सभी अंग चंडीगढ़ में जरूरतमंद मरीजों में प्रत्यारोपित कर दिए गए हैं। हृदय का मैच किसी मरीज से न होने पर पीजीआई ने उसे वाया प्लेन दिल्ली एम्स भेजा, जहां उसका सफल प्रत्यारोपण किया गया। सभी जरूरतमंद मरीज अंग प्रत्यारोपण के बाद अब स्वस्थ हैं। पीजीआई ने रानो के साहस की तारीफ करते हुए उनका दिल से आभार जताया है।
यमुनानगर निवासी 45 वर्षीय मनमोहन बीते सात नवंबर को दुपहिया वाहन से जा रहे थे। ऊबड़-खाबड़ सड़क पर संतुलन खोने से वाहन समेत वह सड़क पर गिर पड़े और उनका सिर फुटपाथ से टकरा गया। उनके सिर में गंभीर चोटें आईं। उनके परिजन उन्हें स्थानीय अस्पताल ले गए लेकिन उनकी हालत नहीं सुधरी। नौ नवंबर को गंभीर स्थिति में उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ लाया गया। यहां भी डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की काफी कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। 12 नवंबर को उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया।
इसके बाद पीजीआई ने अंग प्रत्यारोपण के लिए मनमोहन की पत्नी रानो देवी से अनुरोध किया। रानो देवी ने अपार धैर्य दिखाया और अंगदान के लिए अपनी सहमति दे दी। रानो ने इससे पहले अपने पिता की कॉर्निया दान के लिए भी सहमति दी थी। पीड़ित रानो देवी ने कहा कि यह ऐसी तकलीफ है, जिससे किसी भी परिवार को नहीं गुजरना चाहिए। मैं चाहती हूं कि पति के अंग दूसरे इंसान के शरीर में जाकर उसे नया जीवन दें, इसलिए इन अंगों को राख नहीं होने दूंगी।
रानो की अनुमति मिलते ही 12 नवंबर को पीजीआई की टीम ने जरूरतमंद मरीजों को अंग लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। अंगों की मैचिंग के बाद मनमोहन के लीवर व किडनी को एक मरीज में प्रत्यारोपित किया गया। दूसरी किडनी अन्य मरीज में प्रत्यारोपित की गई। दोनों कॉनिया अलग-अलग मरीजों को लगाई गईं, जो नेत्रहीन थे। हृदय का मैच यहां के किसी मरीज से नहीं हुआ तो पीजीआई ने रोटो की मदद से एम्स दिल्ली से संपर्क साधा। वहां मैचिंग मरीज मिल गया। उसके बाद चुनौती थी हृदय को दिल्ली तक सुरक्षित पहुंचाने की। पीजीआई की टीम के अलावा चंडीगढ़ प्रशासन और पुलिस का पूरा सहयोग लिया गया।
ग्रीन कॉरिडोर बनाकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट तक दिल ले जाया गया और वहां से प्लेन से दिल्ली भेजा गया। उधर, दिल्ली पुलिस ने भी वहां पूरे इंतजाम कर लिए थे और दिल्ली एयरपोर्ट से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर महज 26 मिनट में हृदय को एम्स पहुंचा दिया गया। वहां एक जरूरतमंद मरीज में हृदय का सफल प्रत्यारोपण किया गया, जिसकी खबर पीजीआई को दी गई। रानो को भी इसकी खबर दी गई। उनका दुख पहाड़ की तरह था लेकिन पति के अंग से पांच लोगों को जीवन मिलने की खबर ने उनके चेहरे पर संतुष्टि का भाव ला दिया।
चंडीगढ़ पीजीआई कार्यकारी निदेशक प्रो. सुरजीत सिंह अंगदाता परिवार का कोटि-कोटि आभार, जिन्होंने एक बेहद कठिन निर्णय लिया। दाता मनमोहन सिंह के जैसे परिवार ही आशा की किरण हैं, जो अंधेरे जीवन में रोशनी लाते हैं। उनकी उदारता के कारण ही हर साल सैकड़ों लोगों को दूसरा जीवन मिलता है। हम उनकी इस उदारता से अभिभूत हैं।