बंद बोतल पेयजल से बढ़ती बीमारियों के मद्देनजर केंद्र ने राज्यों से ब्यौरा मांगा, छह राज्यों पर जुर्माना
नई दिल्ली
मिनरल वाटर के नाम पर खराब क्वालिटी के बोतल बंद पेयजल की बिक्री पर केंद्र सरकार ने गंभीरता दिखाई है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों से इस संबंध में ब्योरा तलब किया है। दूषित जल को बोतलों में बिना ब्रांड के बंद कर महंगी कीमत पर बेचे जाने के कई शिकायतें मिली हैं। इससे बीमारियां फैल रही हैं। शिकायतों के बाद जांच में 806 में से 226 नमूने मानक की कसौटी पर फेल पाए गए हैं। खाद्य पदार्थों में मिलावट की शिकायतों के बाद मंत्रालय ने इसके लिए निगरानी योजना बनाई है। आम लोगों को शुद्ध बोतल बंद पेयजल और मिलावट रहित खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना की गई थी। कायदे से मिनरल वाटर और बोतल बंद पेयजल बनाने वाली कंपनियों के लिए केंद्र द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करना जरूरी है।

लेकिन सरकार के मेक इन इंडिया प्लान ने लगता है इन मिलावटी धंधेबाजों की राह आसान कर दी है। नियमों के मुताबिक, बिना आईएसआई मार्का के बंद बोतल पेयजल नहीं बेच सकते हैं। लेकिन हाल के दिनों में बाजार में ऐसी बोतलों की सप्लाई खूब हो रही है, जिस पर एफएसएसएआई और मेक इन इंडिया लॉगो चस्पा है, लेकिन आईएसआई नहीं है।
जानकारी के मुताबिक, प्राधिकरण को खराब क्वालिटी वाले पेयजल की बिक्री के संबंध में लगातार शिकायतें मिली हैं। खाद्य सुरक्षा मानकों से संबंधित कानून के पालन कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकारें हैं। लिहाजा शिकायतें संबंधित राज्य सरकारों को भेज दी गई है। घटिया क्वालिटी के बोतल बंद पेयजल की बिक्री की शिकायतों पर हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात, आंध्र समेत छह राज्यों में संबंधित कंपनियों पर जुर्माना किया गया है। संबंधित राज्यों ने इस बाबत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को रिपोर्ट भेजी है। इस संबंध में एक साल में 54 आपराधिक और 16 सिविल मामले दर्ज किए गए हैं।
खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत बोतल बंद पेयजल के लिए संबंधित कंपनियों को केंद्र और राज्य सरकारों से लाइसेंस लेना अनिवार्य है। मंत्रालय के पास ऐसे लाइसेंस के बारे में तेरह राज्यों से संबंधित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में केंद्र से लाइसेंस प्राप्त पांच कंपनियां बोतल बंद पेयजल उत्पादन करती है। उप्र सरकार ने 18 कंपनियों को लाइसेंस दिया है। दो कंपनियों का ही पंजीकरण आंकड़ों में दर्ज है। उत्तराखंड में ऐसी चार कंपनियां लाइसेंस प्राप्त हैं और दो का पंजीकरण है। हिमाचल में 16 कंपनियों को लाइसेंस मिला है जबकि हरियाणा में ऐसी नौ कंपनियां हैं। चंडीगढ़ का ब्योरा मंत्रालय के पास उपलब्ध नहीं है। लाइसेंस प्राप्त कंपनियों के अलावा कई छोटी कंपनियां स्थानीय स्तर पर बोतल बंद पेयजल का उत्पादन करती है जिनके उत्पाद की गुणवत्ता पर सवाल खड़े होते रहे हैं। अन्य खाद्य पदार्थों में भी मिलावट की शिकायतें हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय को राज्य सरकारों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक एक साल में खाद्य पदार्थों के 74010 नमूने लेकर जांच की गई जिसमें से 14 हजार 599 नमूनों को मिलावटी पाया गया। इस तरह 19.72 प्रतिशत मामलों में मिलावट पाई गई है। इस बाबत 10 हजार 536 मुकदमे दर्ज किए गए हैं। दोषी प्रतिष्ठानों पर 10 करोड़ 93 लाख 87 हजार 214 रुपये का जुर्माना लगाया गया है।