धनंजय कुमार : भारत की एक मुख्य उपज गेहूं के दुर्दिन चल रहे हैं। अमृतकाल में यह सेहत के काल के रूप में चित्रित किया जा रहा है। डायबिटीज के मरीजों को तो इसे चिमटे से भी नहीं छूने की सलाह दी जा रही है। जौ जुआर व बाजरा आदि मिलेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजरे इनायत एवं इनके पकवालों की मेहमाननवाजी के बाद से तो कांग्रेस के लिए भाजपा के नारे की तरह ही गेहूं रसोई घर छोड़ो का माहौल है।
फूड रेगुलेटर एफएसएसआई के पास भी गेहूं के खिलाफ पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत हैं लेकिन यह उसके लिए धर्म संकट जैसा है। वह इस तथ्य को पर्दे में ही रखना चाहता है। लंबे समय से इस मुद्दे पर देश में जुगाली चल रही है।
एक अरसे से यह अन्न भोजनविदों (क्लिनिकल डाइटिशियन) के निशाने पर है। गट हेल्थ यानी आंत की स्थिति सेहत का नया बेहद महत्वपूर्ण फंडा है। इस पर पूरी दुनिया में लगभग एकमत बन गया है। वैसे आयुर्वेद का यह पुराना सिद्धांत रहा है कि आपका पेट और पाचन ठीक है तो सब ठीक है। हम क्या खाते पीते हैं उसका हमारी सेहत से गहरा संबंध है। यह अब रोगों के सारे विशेषज्ञ मानते हैं और सेहत के लिए सुरक्षित भोजन की वकालत भी करते हैं। आहार विशेषज्ञों(डायइटिशिय़न) का मानना है कि सारे रोग हमारे गट ( आंतयानी पेट) में पैदा होते हैं और उसे वहीं हराया जा सकता है।
आंत दाह यानी सूजन ( इनफ्लेमेशन) पैदा करने वाले भोजन ही अंत में रोग उत्पन्न करते हैं। गटबाज विशेषज्ञों के गुट ने गेहूं के आटे से बनी खाने पीने की चीजों को गट हेल्थ का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया है। यह भी सही है कि आज मैदा से बनी चीजों जैसे पिज्जा, नूडल, बर्गर, पास्ता, मोमो आदि की बेहतहासा खपत हो रही है। अगर गेहूं इतना खतरनाक है तो सचमुच चिंता की बात होनी चाहिए।
डायबिटीज के ज्यदातर विशेषज्ञ तो अब सबसे पहले गेहूं छोड़ों की सलाह देने लगे हैं। गेहूं के आटे की रोटी को न्यू शुगर करार देकर मधुमेह (डायबिटीज) के मरीजों को अब सबसे पहले गेहूं से तौबा करनेकी सलाह दी जाने लगी है क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं कीरोटी में चीनी (शुगर) की खासी मात्रा होती है। मिलेट ( मोटे अन्न) की खासियतों में एक यह भी है कि यह मधुमेह के मरीजों के लिए यह अमृत जैसा है। जानी मानी आहार विशेषज्ञ एवं क्लिनिकल डाइटिशियन ईशी खोसला कहती हैं- हम गेहूं खाते रहे तो हेल्दी इंडिया का सपना पूरा नहीं होने वाला क्योंकि क्योंकि गेहूं ही सारी बीमारियों की जड़ बन रही है। जो डायबिटीजसहित किसी भी बीमारी से ग्रसित हैं उन्हें गेहूं का सेवन तत्कालबंद करना चाहिए। जो अभी स्वस्थ हैं वे भी खाने में गेहूं काकम से कम प्रयोग करें वरना उन्हें रोगग्रस्त होने से कोई नहीं रोक सकता। गेहूं के आटे की दो चापातियों में 2 चम्मच के बराबर चीनी होती है। सोचिए हम एक दिन में गेहूं की रोटियों के जरिए कितनी चीनी खा जाते हैं। यह कहें कि गेहूं के सेवन की वजह से ही भारत मधुमेह रोग की दुनिया की राजधानी बनने की राह पर है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। गेहूं में पाया जाने वाला ग्लूटेन कुछ लोगों को नहीं बल्कि सबों को रोगग्रस्त बनाता है। गेहूं की रोटियां एवं अन्य पकवान हर इंसान के गट (पेट) में सूजन पैदा करती है।
श्रीमती खोसला आगे कहती हैं- बहुत पहले खाया जाने वाला गेहूं उतना हानिकारक नहीं था इसलिए मधुमेह के मरीज कम थे लेकिन 1960 के बाद गेहूं की अधिक उपज वाली जो किस्म आई है बहुत हानिकारक साबित हो रही है। पीएम मोदी ने मिलेट बढ़ावा देने का कदम उठा कर सेहत की दिशा में एक बेहद प्रशंसनीय काम किया है। हम यह नहीं कहते कि गेहूं में प्रोटीन नहीं है। गेहूं में प्रोटीन है लेकिन ग्लूटेन उसे खतरनाक बनाता है। यह ग्लूटेन के प्रति संवेदनशील लोगों के लिए ही सिर्फ हानिकारक नहीं है यह सभी लोगों के लिए हानिकारक है।
पोषाहार दवा ( न्यूट्रिशन मेडिसिन) से रोगों का इलाज करने वाली जानी मानी पोषण विशेषज्ञ मंजरी चंद्रा ने कहा कि गेहूं से बनी खानी की चीजों से जितना परहेज हो सके करना चाहिए। पहले के गेहूं में ग्लूटेन कम होता था लेकिन अब गेहूं की जो किस्म हम खाते हैं वह आनुवंशिक रूप से बहुत बदल गया है और उसमें ग्लूटेन की खासी मात्रा हो गई है। ग्लूटेन एक ऐसा प्रोटीन है जिसका पाचन बहुत कठिन होता है। इससे पेट में सूजन भी पैदा होता है। हम अपने मरीजों को गेहूं से बनी खान पान की चीजें से परहेज करने की सलाह देते हैं। यह बहुत से रोगों का कारण बन रहा है।
गेहूं से होने वाली खराबियों के मद्देनजर ही ‘ईट राइट इंडिया’ अभियान चला रही खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाली सरकारी संस्था भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई) के तत्वावधान में 2019 में गेहूं के आटे से बनी चीजों के खाने से होने वाली बीमारियां विषय पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में जाने माने अंतराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने साफ शब्दों में कहा था कि गेहूं भारत की सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा है। खास कर मधुमेह की बढ़ती संख्या को देखते हुए भारत गेहूं का सेवन बंद ही कर दे तो बेहतर होगा।
लेकिन गेहूं के प्रमुख भोजन होने की वजह (एफएसएसआई) ने इस मामले पर चुप्पी साध ली। संवाददाता सम्मेलन के बाद इंडिया हैबिटैट सेंटर में इसी विषय पर दो दिन का सिम्पोजियम हुआ जिसमें गेहूं को साफ शब्दों में सेहत के लिए खतरनाक बताया गया।
वहीं मधुमेह के जाने माने विशेषज्ञ एवं डायबिटीज एडुकेशन रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक डा. अशोक झिंगन ने कहा- हम लोग लोग जो खा रहे हैं वह गेहूं का रिफाइंड आटा खा रहे हैं। बाजार जाते हैं और आटे की एक बोरी ले आते हैं जो चोकर विहीन मैदा होता है। हम गेहूं का आटा नहीं बल्कि मैदा खा रहे हैं। गेहूं के ऐसे आटे से सुगर बढ़ने का जोखिम जरूर होता है। लोग गेहूं सामने पिसवा कर खाएं तो कोई दिक्कत नहीं। मैं अपने मरीजों को गेहूं की रोटी खाने से मना नहीं करता। बेशक मिलेट गेहूं से बेहतर अन्न है लेकिन मिलेट से बना भोजन दो बार खाना मुश्किल है। इसलिए एक बार गेहूं और एक बार मिलेट का प्रयोग हो तो बेहतर होगा