नई दिल्ली। अस्पताल के बिलों में ज्यादातर भारतीय अनिवार्य बीआईएस (BIS) मानक बनाने के पक्ष में हैं। जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब 70 प्रतिशत लोग बिलिंग फॉर्मेट और अस्पताल के बिलों में विवरण की कमी से खुश नहीं मिले।
महामारी के दौरान सामने आई समस्याएं
गौरतलब है कि जारी की गई रिपोर्ट में भारत के 305 जिलों में बसे करीब 23,000 नागरिकों का सर्वे किया गया था। इस सर्वे में 67 प्रतिशत पुरुष और 33 प्रतिशत महिलाओं केा शामिल किया गया। रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना वायरस महामारी के तीन सालों के अंदर अस्पतालों में लोगों के सामने कई तरह की समस्याएं आईं।
बिना स्पष्टीकरण के विवरण और इलाज के अंत में भारी भरकम बिल ने भारत के निजी अस्पतालों के बारे में खराब धारणा बना दी है। वहीं, 47 प्रतिशत लोगों का कहना है कि खाना, सर्विसेज, कंसल्टेशन, फैसिलिटीज आदि के लिए शुल्क अलग-अलग दिए गए थे।
बिल में खाना और सेवाओं के बारे में विवरण नहीं
तकरीबन 43 प्रतिशत लोगों का विचार था कि बिल में खाना और सेवाओं के बारे में विवरण नहीं दिया गया। 10 प्रतिशत लोगों के अनुसार बिल में केवल पैकेज चार्जेज का विवरण था। रिपोर्ट में सुझााव दिया गया कि अस्पतालों के बिलों में पारदर्शिता आने से सबको फायदा रहेगा। उपभोक्ताओं के साथ ही स्वास्थ्य बीमा कंपनियों और पैकेज देने वाले नियोक्ताओं और सरकार को भी मदद मिलेगी।