नई दिल्ली: टीबी यानी क्षय रोग से पीडि़त बच्चे अब दवा खाने में मुंह नहीं बनाएंगे। क्योंकि स्वाद में कड़वी दवाओं की जगह टीबी से ग्रस्त बच्चों को फलों के फ्लेवर वाली दवाएं दी जाएंगी। नियमित अंतराल से दवाएं न खाने से टीबी का पूरा इलाज नहीं हो पाता। इससे अब स्ट्राबेरी और औरेंज फ्लेवर की दवाएं बच्चों को उपलब्ध कराई जाएंगी। स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि अधिकतर बच्चे स्वाद की वजह से दवाएं नहीं खाते हैं।
देश में प्रति लाख लोगों में 217 मरीज टीबी से पीडि़त हैं। जिले में टीबी से पीडि़त मरीजों की संख्या 1098 है। इनमें 100 से अधिक बच्चे शामिल हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार समय से इलाज न मिलने से यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है। जिले में जितने भी बच्चे टीबी से पीडि़त हैं, उनमें अधिकतर दूसरों से फैले संक्रमण की चपेट में आने से इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं। क्षय रोग विभाग के अधिकारी डाक्टर विनोद यादव ने बताया कि बच्चों में प्राइमरी कांप्लेक्स, बाल टीबी, प्रोगेसिव प्राइमरी टीबी, गंभीर टीबी, दिमाग की टीबी, हड्डी की टीबी या फिर टीबी की गांठ पाई जाती है। सामान्यता टीबी माइक्रो वैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस कीटाणु से होती है। वह बताते हैं कि टीबी रोग की दवाएं स्वाद में कड़वी होने के साथ ही हाई डोज की होती हैं। ऐसे में इस रोग से पीडि़त बच्चों को दवा खिलाने में परेशानी सामने आती है। दवा का स्वाद अच्छा न होने से बच्चे इसे खाने से कतराते हैं। इसके चलते बच्चों तक पूरी खुराक नहीं पहुंच पाती है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने बच्चों की दवा में बदलाव किया है। बच्चों को अब कड़वी दवाओं की जगह फ्रूट फ्लेवर वाली टीबी की दवाइयां खिलाई जाएंगी।