नई दिल्ली। अमेरिका में दवा सस्ती करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश का भारतीय फार्मा कंपनियों पर काफी असर पड़ेगा। विशेषज्ञों के अनुसार इंडियन फार्मा कंपनियों की अमेरिकी दवा बाजार में बड़ी हिस्सेदारी है। ट्रंप अमेरिका में दवाओं की कीमतें में 30-80 फीसदी तक कमी लाना चाहते हैं। उनका मानना है कि दूसरे देशों में दवाओं की कीमतें काफी कम हैं, जबकि अमेरिका में ज्यादा हैं। उनकी पॉलिसी का ज्यादा असर स्पेशियलिटी/पेटेंटेंड पोर्टफोलियो वाली फार्मा कंपनियों पर पड़ेगा।
ट्रंप की पॉलिसी का असर ग्लोबल फार्मा बिजनेस मॉडल पर पड़ सकता है। कई फार्मा कंपनियां अमेरिकी बाजार से अपना बिजनेस समेट सकती हैं। गौरतलब है कि भारत की कई फार्मा कंपनियों की अमेरिकी बाजार में अच्छी पकड़ है। उनके रेवेन्यू में अमेरिकी बाजार की 30-45 फीसदी तक हिस्सेदारी है। अमेरिकी फार्मा जेनरिक मार्केट काफी बड़ा है, लेकिन इसमें प्रतियोगिता काफी ज्यादा है।
कोविड से पहले जेनरिक दवा बनाने वाली बड़ी फार्मा कंपनियों का एबिड्टा मार्जिन 19-22 फीसदी के बीच था। अब अमेरिका और भारतीय रिटेल मार्केट्स में जेनरिक दवाओं की कीमतों में काफी फर्क है। इसमें ज्योग्रॉफिक-स्पेसिफिक कॉस्ट अकाउंटिंग का बड़ा हाथ है। ट्रंप के मोस्ट फेवर्ड नेशन प्राइसिंग मॉडल का इस्तेमाल करने का असर भी इंडियन फार्मा कंपनियों पर पड़ेगा।
इसका मतलब है कि अमेरिका में किसी दवा का रिटेल प्राइस उतना ही होना चाहिए जितना उस दवा की कीमत दुनिया के दूसरे देश में होगी। माना जा रहा है कि इस पॉलिसी के चलते कुछ भारतीय कंपनियां अमेरिकी बाजार से बाहर जाने का फैसला कर सकती हैं। दवा की कीमतों पर रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर होने वाले खर्च का असर पड़ता है।