वाराणसी। आयुर्वेदिक दवाइयां चार गुणा हुई महंगी हो गई हैं। इससे रोगियों के इलाज में दिक्कतें आने लगी हैं। इसके पीछे मुख्य कारण पिछले 2 साल से पारे की उपलब्धता में आई कमी को बताया जा रहा है। पारे की कमी ने आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण पर बुरा असर डाला है।
गौरतलब है कि आयुर्वेद में असाध्य रोगों को ठीक करने में अन्य दवाओं के साथ पारे का प्रयोग किया जाता है और यह दवा की गुणवत्ता को बढ़ाता है। यह कई बीमारियों को ठीक करता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रस शास्त्र विभाग के विभाग अध्यक्ष की ओर से इसको लेकर पीएम मोदी को पत्र भी लिखा गया। पत्र में पारे की उपलब्धता जल्द कराए जाने की मांग की गई है। प्रो. आनंद चौधरी बताया कि आम लोगों के लिए पारा यानी मर्करी जहर होता है। इसका प्रयोग नहीं होना चाहिए, लेकिन आयुर्वेद में ये विष से अमृत बन जाता है।
प्रो. चौधरी के अनुसार पारद या पारा का उपयोग भारत में पांचवीं शताब्दी से शुरू हुआ। अनुसंधान के बाद इसका प्रयोग पूर्ण रूप से दवाओं में होने लगा। अंतरराष्ट्रीय बैन लगने से मर्करी का व्यापार बंद हो गया तो इसका दुष्प्रभाव भारत पर भी पड़ा है। बाकी सभी उद्योगों में मर्करी बैन हो ये जरूरी है, लेकिन आयुर्वेद में मर्करी जीवनदान के रूप में देखी जाती है।
आनंद चौधरी ने बताया कि बैन के बाद मर्करी की उपलब्धता एकदम कम हो गई। बाजार में यह चार गुना दामों में उपलब्ध हो रहा है। इस वजह से मरीज का इलाज प्रभावित हो रहा है। यह समस्या चिकित्सकों और दवा बनाने वालों दोनों के लिए है। इसके साथ ही मरीज के लिए भी है। डॉक्टर के सामने समस्या यह है कि वह अपने मरीज को कैसे समझाएं कि इन दवाओं की शॉर्टेज क्यों है। इनके दामों में इतनी बढ़ोतरी हो गई है।