नई दिल्ली। केंद्र सरकार सस्ती दवाओं पर मार्जिन की सीमा तय करने जा रही है। औषधि विभाग ने दो रुपए से ज्यादा एमआरपी वाली दवाओं पर ट्रेड मार्जिन बढ़ाने का सुझाव दिया है। जबकि दो रुपए से कम मूल्य की सभी दवाओं पर मुनाफे की सीमा (ट्रेड मार्जिन) 30 प्रतिशत तक सीमित रखने की सिफारिश की है। इससे सरकार यह तय करेगी कि थोक और खुदरा विक्रेता दवा पर कितना लाभ कमाएंगे। दवा के साथ कैप्सूल, बोतल, इंजेक्शन भी इसके दायरे में होंगे। विभाग ने यह प्रस्ताव रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के पास भेजा है।

बता दें कि अधिसूचित दवाओं के लिए थोक विक्रेता के लिए मौजूद मार्जिन 8 प्रतिशत और खुदरा विक्रेता के लिए 16 प्रतिशत है। जबकि गैर अधिसूचित दवाओं के लिए यह क्रमश: 10 प्रतिशत और 20 प्रतिशत है। राष्ट्रीय औषधीय नियंत्रण प्राधिकरण इसका इस्तेमाल दवाओं के दाम तय करने के लिए करता है। हालांकि व्यवहार में यह लाभ कंपनियों और कारोबारियों के दावे से कहीं ज्यादा रहता है। फिलहाल दो रुपए प्रति यूनिट से कम एमआरपी वाली सभी दवाओं पर मार्जिन 38 प्रतिशत है। हालांकि नई दवा मूल्य नियंत्रण आदेश 2013 के लागू होने के बाद दवाओं के दाम की कोई सीमा नहीं रह गई है। इसलिए विभाग ने कम मूल्य की दवा पर ऊंची मार्जिन सीमा और ऊंचे मूल्य की दवाओं पर कम मार्जिन सीमा तय करने की सिफारिश की है। सूत्रों के अनुसार औषधि बाजार को लेकर कई फार्मूले हैं और इस तरह कंपनियों का मुनाफा 200 से 400 फीसदी तक पहुंच जाता है।

लिहाजा इतने ज्यादा मुनाफे की मार से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए मार्जिन की सीमा तय करने पर विचार हो रहा है। केंद्र सरकार ने 2016 में संयुक्त सचिव सुधांश पंत की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। समिति को सीधे व्यापारियों और वितरकों को सप्लाई की जाने वाली दवा ब्रांडों के मार्जिन का अध्ययन करने को कहा गया था, न कि एमआर से अस्पतालों को बेची जाने वाली दवाओं का। समिति ने जो सिफारिश की, उसके अनुसार 2 रुपए से ज्यादा मूल्य की दवाओं पर ट्रेड मार्जिन बढ़ाने का सुझाव दिया है, जबकि दो रुपए से कम मूल्य की दवाओं पर ट्रेड मार्जिन 30 प्रतिशत तक सीमित रखने को कहा है। विशेषज्ञों ने आग्रह किया है कि दवा कीमतों पर नियंत्रण के किसी प्रयास से उद्योग को नुकसान पहुंचेगा। भारतीय फार्मास्युटिकल संघ ने कहा है कि नए प्रस्ताव में मार्जिन करीब 11 हजार 500 करोड़ और बढ़ जाएगा और दवाएं महंगी होगी। नवंबर में एनजीओ ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बाजार की प्रतिस्पर्धा पर आधारित दवा नियंत्रण की नीति को अतार्किक बताते हुए सरकार से इसकी समीक्षा करने को कहा था। एनजीओ ने भी नए प्रस्ताव को उद्योगों के लाभ वाला बताया है।