नई दिल्ली। दुनिया में सभी लोगों के लिए दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन में चर्चा के दौरान भारत ने विकसित देशों की ओर से पेश किए जा रहे दवा के उचित मूल्य सिद्धांत पर संदेह जताते हुए कहा है कि इसके नाम पर दवा कंपनियों को अनुचित मुनाफा कमाने का रास्ता नहीं खोल देना चाहिए। इसके अलावा भारत ने डब्ल्यूएचओ से देशों की बीमारियों के निदान संबंधी शोध के लिए एक विशेष कोष बनाने की भी मांग की है।
बता दें कि अमेरिका समेत कई विकसित देश दवाओं के किफायती मूल्य के स्थान पर उचित मूल्य की वकालत कर रहे हैं। इसमें दवा कंपनियों के शोध खर्च और मुनाफे को भी शामिल किया जाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अरूण सिंघल की अध्यक्षता में चल रही इस चर्चा में भारत ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि दवाओं की कमी और दवाओं की उपलब्धता दो अलग-अलग मुद्दे हैं, इन्हें आपस में मिलाना नहीं चाहिए।
भारत का ऐसा मानना है कि कई बार दवा की कमी नहीं होने के बावजूद बाजार की गड़बडिय़ों, आईपीआर, जरूरत से ज्यादा कड़े नियमन और एकाधिकार के चलते दवा खरीदने में होने वाली अड़चनों के चलते लोग दवा से वंचित हो जाते हैं। इसलिए डब्ल्यूएचओ ट्रिप्स के मौजूदा नियमों में मिली छूटों का सहारा लेते हुए सभी के लिए दवा की उपलब्धता को लेकर स्पष्ट रोडमैप तैयार किया जाना चाहिए। भारत में दवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी देते हुए इसमें कहा गया है कि हम राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण और जांच लैब की क्षमता का लगातार विस्तार कर रहे हैं। इसके अलावा लोगों को किफायती दाम पर दवा उपलब्ध कराने के लिए कई राष्ट्रीय योजनाएं चलाई जा रही हैं।
भारत ने दवा कंपनियों पर रिसर्च एंड डेवलपमेंट का बोझ कम करने के लिए वृहद स्तर पर वैश्विक साझेदारी करने की वकालत करते हुए डब्ल्यूएचओ से विकासशील देशों में व्याप्त बीमारियों की दवाओं के विकास के लिए एक अलग कोष बनाने की भी मांग की। अपने प्रस्ताव में भारत ने कहा कि सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाओं और वैक्सीन के एक भरोसेमंद उत्पादक के रूप में भारत की पहचान न सिर्फ विकाासशील देशों में है, बल्कि विकसित देश भी इसे स्वीकार करते हैं। दुनिया में दवाओं और वैक्सीन की कमी को दूर करने के लिए भारत सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं, अमेरिका ने सस्ती दवा के निर्माण में हो रहे बौद्धिक संपदा अधिकार यानी आईपीआर के उल्लंघन पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे दवा कंपनियां आरएंडडी पर पैसा खर्च करने को लेकर हतोत्साहित होंगी और नई दवाओं के विकास में कमी आएगी।