जयपुर (राजस्थान)। एंटीवेनम दवा रेगिस्तानी सांपों के जहर को बेअसर करने में अप्रभावी साबित हो रही है। शोध में बताया गया है कि राज्य में सर्पदंश के आधे से अधिक मामले अत्यधिक विषैले सॉ स्केल्ड वाइपर (एकिस कैरिनाटस सोचुरेकी) के कारण होते हैं। इन सांपों को स्थानीय तौर पर पीवना सांप के नाम से जाना जाता है।
यह है मामला
साँप द्वारा काटे गए मामलों के 210 रोगियों पर एक अध्ययन किया गया है। पता चला कि इनमें से 105 मामलों में सोचुरेकी जहर था। इस जहर पर सरकारी अस्पतालों में दी जाने वाली दवा एंटीवेनम अप्रभावी सिद्ध हो रही है। यह बात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जोधपुर, अटल बिहारी वाजपेयी आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ और डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल, दिल्ली द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन से सामने आई है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि पश्चिमी भारत में विशिष्ट एंटीवेनम की तत्काल आवश्यकता है।
गौरतलब है कि वर्तमान में राजस्थान में उपयोग किया जाने वाला एंटीवेनम दक्षिण भारतीय सांपों के जहर का उपयोग करके बनाया जाता है। हालाँकि, पीवना सर्पदंश के लगभग 70 प्रतिशत मामलों में यह एंटीवेनम अप्रभावी है।
अध्ययन से पता चलता है कि पीवना सहित रेगिस्तानी सांपों में अपने दक्षिण भारतीय समकक्षों की तुलना में अधिक शक्तिशाली जहर होता है। परिणामस्वरूप, रोगियों को अक्सर 5 से 10 एंटीवेनम इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में, 150 से 200 इंजेक्शन देना भी जहर पर अप्रभावी साबित हुआ है।
एंटीवेनम पीवणा सांप के काटने के इलाज के लिए अपर्याप्त साबित हो रहा है। यह सांप मुख्य रूप से पश्चिमी राजस्थान में पाया जाता है। सॉ स्केल्ड वाइपर (इकिस कैरिनैटस) भारत में सर्पदंश की सबसे अधिक घटनाओं और मौतों के लिए जिम्मेदार है।