नई दिल्ली। आयुष अप्रूव्ड दवाओं को प्री-क्लीनिकल शोध की जरूरत नहीं है। इस बारे में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

निर्देशों के अनुसार एकीकृत अनुसंधान में इस्तेमाल की जाने वाली आयुष-अनुमोदित दवाओं को अतिरिक्त सुरक्षा परीक्षण या ‘प्री-क्लीनिकल’ अध्ययन की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, गैर-संहिताबद्ध पारंपरिक दवाओं को संपूर्ण नियामक अनुमोदन प्रक्रिया अपनानी होगी।

आईसीएमआर ने मानव प्रतिभागियों को शामिल करते हुए जैव चिकित्सा और स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय नैतिक दिशा-निर्देश में एक परिशिष्ट प्रकाशित किया है। बताया गया है कि इस पहल का मकसद पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के एकीकरण पर शोध में नैतिक कठोरता लाना है। साथ ही नियामक अनुपालन सुनिश्चित करके आयुष-आधारित एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल के वैज्ञानिक आधार को मजबूत करना है।

ऐसे शोध की देखरेख करने वाली आचार समितियों में अब दो आयुष विषय-वस्तु विशेषज्ञों को शामिल करना होगा। इनमें कम से कम एक संस्थान से बाहर का होना चाहिए ताकि समग्र विचार-विमर्श तय हो सके।