लखनऊ। केंद्रीय औषधिक अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई), लखनऊ ने कोरोना की स्वदेशी दवा उमीफेनोविर बनाने का दावा किया है। संस्थान के अनुसार इस एंटीवायरल दवा के तीसरे चरण का क्लिनिकल ट्रायल सफल रहा है। संस्थान का दावा है कि उमीफेनोविर कोरोना के हल्के व लक्षणरहित रोगियों के इलाज में बहुत प्रभावी है और उच्च जोखिम वाले रोगियों के लिए रोगनिरोधी के रूप में उपयोगी है। यह पांच दिन में वायरल लोड को पूर्ण रूप से खत्म कर देता है।

निदेशक ने बताया कि उमीफेनोविर सार्स कोविड-19 के सेल कल्चर को बेहद प्रभावी तरीके से नष्ट करता है। यह मानव कोशिकाओं में इस वायरस के प्रवेश को रोकता है। इसकी पांच दिन की दवा का खर्च करीब 600 रुपये तक आता है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने क्लीनिकल परीक्षण रिपोर्ट का मूल्यांकन किया है और आपातकालीन स्वीकृति देने के लिए और अधिक संख्या में हल्के लक्षण वाले रोगियों पर अध्ययन जारी रखने के लिए कहा है।

निदेशक प्रो. कुंडू ने बताया कि उमीफेनोविर टैबलेट के रूप में है। इसे सिरप और इनहेलर के रूप में भी विकसित करने पर काम किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि परीक्षण में ऐसे मरीज भी शामिल थे, जिनमें वायरस का डेल्टा वेरियंट मिला था। ऐसे में माना जा रहा है कि यह डेल्टा वेरिएंट पर भी कारगर हो सकती है। उन्होंने बताया कि 132 मरीजों पर क्लिनिकल परीक्षण किया गया।

सीडीआरआई के निदेशक प्रो. तपस कुंडू ने बताया कि औषधि महानियंत्रक, भारत सरकार (डीसीजीआई) ने गत वर्ष जून में केजीएमयू, एरा लखनऊ मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल और राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के सहयोग से सीडीआरआई को लक्षणविहीन, हल्के और मध्यम कोविड-19 रोगियों पर तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण की अनुमति दी थी। सीएसआईआर ने 16 दवाएं सुझाई थीं, जिनमें से ट्रॉयल के लिए उमीफेनोविर (आर्बिडोल) का चयन किया गया।

टीम के समवन्यक डॉ. आर रविशंकर ने बताया कि उमीफेनोविर एक व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीवायरल है। रूस, चीन और अन्य देशों में करीब 20 सालों से ज्यादा वर्षों से एन्फ्लुएंजा और निमोनिया के लिए एक सुरक्षित और बिना सलाह के उपलब्ध दवा के रूप में उपयोग किया जाता रहा है। केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) लखनऊ कोरोना की नई दवा उमीफेनोविर का पेटेंट कराने में जुटा है। संस्थान के निदेशक प्रो. तपस कुंडू ने बताया कि इस दवा का डबल ब्लाइंड प्लेसिबो नियंत्रित क्लिनिकल परीक्षण कर अध्ययन किया गया है। दुनिया में इस तरह पहला अध्ययन है। इसमें इस्तेमाल की गई दवा के खुराक का पहले कभी भी सार्स कोविड 2 के खिलाफ परीक्षण नहीं किया गया है।

उन्होंने बताया कि केजीएमयू के डॉ. हिमांशु रेड्डी और डॉ. वीरेंद्र अतम के अनुसार इस दवा के इस्तेमाल से संक्रमितों के तेजी से ठीक होने से वायरस का फैलाव कम होगा। एरा लखनऊ मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के डॉ. एमएमए फरीदी के अनुसार दवा के इस्तेमाल की अनुमति मिलने के बाद इसे गर्भवती महिलाओं और बच्चों को भी दिया जा सकता है।

संस्थान की रसायनविदों की टीम के समन्वयक डॉ. आर रविशंकर ने बताया कि टीम में शामिल डॉ. अजय कुमार श्रीवास्तव, डॉ. चंद्र भूषण त्रिपाठी, डॉ. नयन घोष व डॉ. नीलांजना मजूमदार और उनके छात्रों ने परीक्षण के लिए एपीआई और टैबलेट बनाने के लिए एक महीने के भीतर ही दवा को संश्लेषित किया। साथ ही प्रौद्योगिकी को मेसर्स मेडिजेस्ट गोवा को हस्तांतरित कर दिया।

डॉ. कुंडू ने बताया कि 3 अक्तूबर 2020 से 28 अप्रैल 2021 के बीच नौतिक अनुमोदन प्राप्त करने, संस्थान में दवा की स्थिरता संबंधी अध्ययन पूरा करने के बाद रोगियों की भर्ती की गई। वैज्ञानिकों ने उपलब्ध शोध विश्लेषण के आधार पर अधिकतम 14 दिनों के लिए 800 मिलीग्राम दवा दिन में दो बार देने का निर्णय लिया गया। उन्होंने आईएमटीए चंडीगढ़ के सहयोग से यह दिखाया कि उमीफेनोविर सार्स कोविड 2 के सेल कल्चर को बेहद प्रभावी तरीके से रोकता है।

डॉ. कुंडू ने बताया कि सीडीआरआई की डायग्नोस्टिक लैब में करीब तीन लाख मरीजों के नमूनों की जांच की गई है। संस्थान ने एक स्वदेशी आरटीपीसीआर किट भी विकसित की है। यह तकनीक एक कंपनी को हस्तांतरित की गई है। जल्द ही इस किट के मार्केट में आने का इंतजार है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार के अनुरोध पर सैकड़ों रोगियों से वायरस के उपभेदों का संपूर्ण जीनोम विश्लेषण भी कर रहा है। करीब 95 फीसदी मरीजों में डेल्टा वेरिएंट पाया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में यूनिट ऑफ एक्सीलेंस इन वायरस रिसर्च एंड थेरेप्यूटिक्स की स्थापना की गई है। इसमें एकेटीयू ओर केजीएमयू अहम सहयोगी रहेंगे। उन्होंने बताया कि डेंगू, जेई समेत अन्य वायरस पर भी अध्ययन चल रहा है।