नई दिल्ली। आयातित दवा पर ही ओवर-प्रिंटिंग या स्टीकर लगाने की अनुमति रहेगी। इस संबंध में केंद्रीय औषधि नियामक (CDSCO) ने स्पष्ट किया है कि यह अनुमति दवा आयात के लिए सख्ती से दी जाएगी। वहीं, आयातक को अपने नाम पर वैध विनिर्माण लाइसेंस के तहत ऐसा करना होगा।
बता दें कि यह स्पष्टीकरण वर्ष 2020 में नियामक के कार्यालय ज्ञापन के क्रम में है। इसमें आयातकों को हर बार अनुमति लेने के बजाय कई उत्पादों के लिए व्यापक अनुमति मिल सकेगी। सीडीएससीओ ने स्पष्ट किया कि औषधि नियम, 1945 के नियम 104्र के तहत दवा पर लेबलिंग या ओवरप्रिंटिंग या स्टिकर लगाने आदि की गतिविधि केवल दवाओं के आयात के लिए सख्ती से अनुमति दी जाती है। ऐसी सभी गतिविधियाँ आयातक को अपने नाम पर वैध विनिर्माण लाइसेंस के तहत करनी होंगी।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने कहा कि लाइसेंसधारक के पास पर्याप्त सुविधा या भंडारण, सहायक क्षेत्र, लेबलिंग सुविधा आदि होनी चाहिए। उसे एसएलए की संतुष्टि के लिए कम से कम एक विनिर्माण और क्यूए कार्मिक नियुक्त करना चाहिए। ऐसी लेबलिंग गतिविधियों के लिए क्यूसी प्रयोगशाला और कार्मिकों की आवश्यकता नहीं हो सकती है। लेबलिंग ड्रग्स और कॉस्मेटिक नियमों के मौजूदा प्रावधानों का पालन करेगी। यह गतिविधि मूल लेबल को नहीं छिपाएगी।
ड्रग्स नियमों के तहत कोई भी व्यक्ति किसी औषधि के कंटेनर, लेबल या रैपर पर निर्माता द्वारा बनाए गए या दर्ज किए किसी भी शिलालेख या चिह्न को नहीं बदलेगा। यह व्यापक अनुमति मूल लेबल को छुपाए बिना लाइसेंस प्राप्त विनिर्माण परिसर में की जाने वाली लेबलिंग गतिविधि के लिए होनी चाहिए।