नई दिल्ली। दिल्ली सरकार एक तरफ निजी अस्पतालों पर अंकुश लगाने व इलाज का खर्च नियंत्रित करने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर दिल्ली सरकार के अधीन अस्पताल यकृत व पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) ने इलाज व कई तरह की जांच के शुल्क बढ़ा दिए हैं। यहां इलाज कराना पहले के मुकाबले महंगा हो गया है और लिवर की विभिन्न बीमारियों से पीडि़त मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। आइएलबीएस लिवर संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए देश का सबसे अत्याधुनिक चिकित्सा संस्थान है। लिवर से संबंधित विभिन्न बीमारियों से पीडि़त मरीजों को किफायती सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए दिल्ली सरकार ने इसे स्वायत्तशासी अस्पताल के रूप में विकसित किया इसलिए अस्पताल में कोई सुविधा मुफ्त नहीं है।
यहां मरीजों को किफायती दर पर इलाज का प्रावधान किया गया। मरीजों को इलाज के लिए पहले अस्पताल की ओपीडी में डॉक्टरों को 200 रुपये परामर्श शुल्क भुगतान करना पड़ता था। इसके अलावा पहली बार इलाज के लिए अस्पताल पहुंचने पर सौ रुपये पंजीकरण शुल्क लगता है। इस तरह पहली बार ओपीडी में 300 रुपये और इसके बाद फालोअप इलाज के लिए दोबारा आने पर 200 रुपये शुल्क लगता था। अब ओपीडी में पहली बार का परामर्श शुल्क बढ़ाकर 400 रुपये (100 रुपये पंजीकरण शुल्क शामिल) और पुराने मरीजों के फालोअप इलाज के लिए ओपीडी का शुल्क 300 रुपये लिया जा रहा है। इस तरह ओपीडी के शुल्क में सौ रुपये की बढ़ोतरी की गई है।
इसके अलावा आइपीडी (इन पेसेंट डिपार्टमेंट) के शुल्क में 200 से 1,000 रुपये तक की बढ़ोतरी की गई है। इस वजह से जनरल वार्ड में भर्ती मरीजों को पहले के मुकाबले प्रतिदिन 200 रुपये बेड शुल्क अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। इसी तरह सेमी प्राइवेट वार्ड के लिए प्रतिदिन 700 रुपये व प्राइवेट वार्ड के लिए 1,000 रुपये अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। इसके अलावा वार्डों में मरीजों के इलाज के लिए डॉक्टरों के विजिट करने का शुल्क भी बढ़ा दिया गया है। विभिन्न जांचों के शुल्क भी बढ़ाए गए हैं। इस बारे में अस्पताल प्रशासन कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।