नई दिल्ली। देश भर में कोरोना को मात देने के लिए टीकाकरण का कार्य जारी है। गौरतलब है कि एक तरफ लोग वैक्सीन लगवा रहे है तो वहीं दूसरी तरफ लोगों के मन में ये सवाल भी उठा रहा है कि आखिर कोवैक्सीन और कोविशील्ड में से कौन से वैक्सीन कितनी कारगर है। जिसको लेकर अब सरकार की तरफ से वैक्सीन ट्रैकर पोर्टल लॉन्च करने की योजना है। जिसके तहत कोविशील्ड और कोवैक्सीन कितनी कारगर है इसकी जांच की जाएगी। कोविड वैक्सीन ट्रैकर प्लेटफॉर्म से डेटा एकत्र करने के बाद कोविशील्ड खुराक के बीच के अंतराल को बढ़ाने के अपने निर्णय के प्रभाव की समीक्षा करने की योजना पर भी काम कर रही है। सूत्रों का कहना है कि डेटा, सरकार को यह तय करने में भी मदद कर सकता है कि कोविशील्ड के लिए सिंगल डोज के नियम को मंजूरी दी जाए या नहीं।

सूत्रों ने कहा कि नए प्लेटफॉर्म के डेटा का अगस्त के आसपास विश्लेषण किए जाने की उम्मीद है। बताते चलें कि भारत में अभी कोविशील्ड और कोवैक्सिन का उपयोग किया जा रहा है। जिसमें 90 प्रतिशत उपयोग कोविशील्ड है। हाल ही में रूस के स्पुतनिक वी को भी मान्यता दी गयी है। नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन के डॉ एन के अरोड़ा ने कहा है कि एक मंच स्थापित किया जा रहा है जहां प्रतिदिन के ​​​​डेटा के आधार पर हम वैक्सीन की प्रभावशीलता, पुन: संक्रमण और रुझानों को देखेंगे, जैसे-जैसे वैक्सीन कवरेज बढ़ता है।

अरोड़ा ने कहा कि मार्च-अप्रैल में कोविड के टीकों की प्रभावशीलता का अध्ययन करने की आवश्यकता पर चर्चा शुरू हुई थी। इससे पहले, भारत टीकों की प्रभावशीलता पर नज़र नहीं रख रहा था। उन्होंने कहा कि इसके तहत टीकाकरण के बाद संक्रमण की संभावना का अध्ययन किया जाएगा। इससे यह अंदाजा हो जाएगा कि टीकाकरण के बाद आपको कितने समय तक बीमारी से बचाया जा सकता है… यह हमें टीके की प्रभावशीलता पर खुराक के बीच के अंतराल को बढ़ाने के प्रभाव को भी बताएगा और क्या इसमें वृद्धि या कमी करके संशोधन की आवश्यकता है।

नाम न छापने की शर्त पर एक अन्य सदस्य ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कोविशील्ड के भी एक ही खुराक दिए जाने को लेकर भी विचार किए जा रहे हैं। क्योंकि कई अन्य वायरल वेक्टर वैक्सीन एक डोज में ही कारगर हो रहे हैं। जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल डोज वैक्सीन भी वायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म पर ही आधारित है, जबकि दो-खुराक वाले स्पुतनिक वैक्सीन भी इसी तकनीक पर आधारित है जिसे सिंगल डोज के विकल्प के रूप में भी पेश किए जा रहा है। सिंगल डोज सरकार को अपने टीकाकरण अभियान के साथ आबादी को तेजी से कवर करने में मदद करेगा, जो कि कमी के कारण धीमा हो गया है।

हालांकि इस प्लेटफॉर्म को लॉन्च करने की तारीख की घोषणा अभी नहीं की गई है, लेकिन अरोड़ा के मुताबिक, यह “बहुत जल्द” तैयार होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि हम देश भर से एकत्र किए गए डेटा का बेहतर उपयोग करने की स्थिति में हैं। इसे एक “स्थायी” मंच बनाने का प्रयास है जिसका उपयोग अन्य नई और उभरती बीमारियों के लिए किया जा सकता है जिन्हें भविष्य में टीकाकरण की आवश्यकता होती है।

बताते चलें कि विशेषज्ञ भारत को आबादी के डेटा का उपयोग करने को लेकर लगातार सलाह देते रहे हैं। डोज के अंतराल पर अपनी नीति निर्धारित करने के लिए भारत अब तक टीकों के उपयोग पर अन्य देशों के अध्ययनों पर निर्भर रहा है। बताते चलें कि कोविशील्ड एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा बनाने गए वैक्सीन का भारतीय संस्करण है। जहां भारत ने कोविशील्ड के दो डोज के बीच के अंतराल को बढ़ा दिया है वहीं ब्रिटेन में इसका अंतराल कम है।