शिमला। अब हिमाचल में अपना अलग फार्मासिस्ट डायरेक्ट्रेट होगा। इसकी तैयारी प्रदेश में शुरू हो गई है। इंडियन फार्मास्यूटिकल एसोसिएशन (आईपीए) ने हिमाचल सरकार को फार्मेसी निदेशालय खोलने की सिफारिश की है।
आईपीए ने प्रदेश अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य, बीके अग्रवाल को एक पत्र लिखा है जिसमें हिमाचल में फार्मासिस्ट का अलग से निदेशालय बनाने के लिए पैरवी की गई है। इस निदेशालय को बनाने की जरूरत इसलिए बताई गई है, क्योंकि आधार स्तर पर कई दवाइयां बिना इस्तेमाल के एक्सपायर हो जाती हैं, जिसके लिए जरूरी है कि एक अलग से निदेशालय बनाया जाए। इसमें मुख्यत: फार्मासिस्ट का काम अस्पतालों में दवाओं को खरीदने के लिए एक जिम्मेदारी तय की जानी है। संबंधित अस्पताल में कितनी दवाओं की खपत है, किस तरह के मरीज अस्पताल में आते हैं और किस तरह के क्षेत्र में किस तरह की मौसमी बीमारी में कौन-सी दवा की कितनी जरूरत है, इसकी पूरी जिम्मेदारी उक्त अस्पताल के फार्मासिस्ट के कंधों पर होगी।
 उस अस्पताल का फार्मासिस्ट ही दवाओं का इंडेंट भरकर निदेशालय को सौंपेगा, जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से उसकी खरीदारी हो पाएगी। एसोसिएशन ने प्रदेश सरकार को साफ किया है कि फार्मासिस्ट का मुख्य काम दवाओं को मरीजों को देना है। अभी दवाओं के आबंटन का सारा काम ज्यादातर डॉक्टर कर रहे हैं, जिसमें डॉक्टर यह स्टडी नहीं कर पाता है कि इस अस्पताल में किस तरह के ज्यादातर मरीज इलाज करवाने आ रहे हैं, जिससे अस्पताल में वही दवाएं खरीदी जाएं जो आवश्यक हैं। हालांकि इस निदेशालय में निदेशक की कमान स्वास्थ्य निदेशक को ही सौंपने के लिए कही गई है, लेकिन उसमें अन्य स्टाफ में डिप्टी डायरेक्टर्ज सहित क्लीनिक फार्मासिस्ट के पदों को भरा जाना जरूरी है। स्टेट फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष गोपाल शर्मा ने बताया कि प्रदेश में फार्मासिस्ट का अलग डायरेक्ट्रेट बनाने पर प्रक्रिया शुरू की जा रही है। इसे लेकर आईपीए ने प्रदेश सरकार को पत्र लिखा है। जिलों के सीएमओ स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए गए बजट के मुताबिक सीएचसी, पीएचसी और जिला अस्पतालों में दवाओं की खरीद कर लेता है। इसमें लगभग सभी प्रकार की दवाएं शामिल होती हैं। एक उदाहरण के मुताबिक किसी पीएचसी में स्थानीय लोगों में से गर्भवती महिलाएं मात्र दस होती हैं, लेकिन बिना स्टडी करके एक अनुमानित बजट के मुताबिक सौ महिलाओं की दवाएं खरीद ली जाती हैं। इस कारण बाद में ये दवाएं किसी और को नहीं दी जातीं और ये विभाग को वापस करनी पड़ती हैं। वहीं, सीजन में होने वाले रोगों के मुताबिक भी दवाएं अस्पताल में दोबारा से ही खरीदनी पड़ती हैं।