जोधपुर। डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कोरोना संक्रमण की आयुर्वेदिक दवा पर शोध चल रहा था। लेकिन कहा जा रहा है कि आयुर्वेदिक इलाज करवाने वाले मरीज इस दवा के शोध में रोड़ा अटका चुके हैं। मरीजों की बेरुखी से कोरोना की आयुर्वेदिक दवा पर शोध अटक गया है। दावा किया जाता है कि आयुर्वेद की ये दवाइयां बुखार तोड़ने, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, लिवर को ठीक करने और फेफड़ों से कफ को बाहर निकालने में कारगर हैं।
इन दवाओं का शोध अध्ययन अगर पूरा हो जाता तो कोरोना की तीसरी लहर में उपयोगी साबित हो सकता है। आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अभिमन्यु कुमार ने कहा कि मरीजों से फिर सम्पर्क का प्रयास किया जा रहा है। मरीजों से तालमेल बैठाने के बाद अध्ययन का काम पूरा कर लिया जाएगा। दरसअल कोरोना की बेकाबू दूसरी लहर के दौरान कुछ लोग आयुर्वेदिक इलाज़ करवाने लगे थे। इसी दौरान। शहर के करवड़ में डॉ. राधाकृष्णन आयुर्वेद विश्वविद्यायल में संचालित कोविड केयर सेंटर में आयुर्वेदिक दवा पर शोध शुरू हुआ।
जोधपुर के मरीजों ने आयुर्वेद चिकित्सा से इलाज भी लिया लेकिन बाद में आयुर्वेद अस्पताल आए ही नहीं। लिहाजा आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कोरोना की दवा के शोध का काम अटक गया है। बोरानाड़ा कोविड सेंटर पहुंचे 74 कोरोना संक्रमित मरीजों में से 60 संक्रमित मरीजों पर शोध अध्ययन किया जा रहा था। कहा गया है कि आयुर्वेद की तीन दवाओं से कोरोना मरीजों का इलाज किया गया।
मरीजों को आयुष-64, सशमनी वटी यानी “गिलोय” और वातश्लेमिक जवर्ध्यन क्वाथ यानी “काढ़ा” यह आयुर्वेद दवा मरीजों को दी गई। आयुष-64, सशमनी वटी यानी “गिलोय” ओर वातश्लेमिक जवर्ध्यन क्वाथ यानी “काढ़ा” इन तीन दवाओं को कोरोना संक्रमित मरीजो में 15 दिन तक प्रभाव देखना था। आयुर्वेद डॉक्टर व रिसर्च टीम मरीजों से आयुर्वेद दवा के असर जानने को उनके घर भी गए। लेकिन 60 में से 40 मरीज आयुर्वेद दवा का इफेक्ट नहीं बता रहे हैं। लिहाजा आयुर्वेद दवा के अध्ययन पर ब्रेक लग गया है।