चंडीगढ़। चिकित्सा पद्धति कई प्रकार की है। जैसे एलोपैथिक चिकित्सा, आयुर्वेदिक चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपैथिक चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा, एक्यूप्रेशर चिकित्सा, एक्यूपंचर चिकित्सा, आदि। आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा के अतिरिक्त अन्य सभी चिकित्सा पद्धतियाँ विदेशी हैं। अन्य चिकित्सा पद्धतियों में सबसे अधिक लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति एलोपैथी है। इस चिकित्सा पद्धति के लोकप्रिय होने का प्रमुख कारण त्वरित असरकारक उपचार है। अत: फास्ट सिम्प्टोमेटिक रिलीफ ही इसकी लोकप्रियता की जड़ है। तुरंत असरकारक उपचार के अतिरिक्त इस पद्धति में शल्यक्रिया के भी बहुत से आधुनिक तरीके उपलब्ध हैं। अपने इन्ही दो गुणों के कारण यह पद्धति अन्य सभी पद्धतियों पर भारी पड़ रही है।
एलोपैथी के अलावा अन्य पद्धतियों की दवाओं को खाने से दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) कम से कम होते हैं क्योंकि इनका मुख्य स्त्रोत प्राकृतिक होता है जबकि एलोपैथिक दवाओं के मुख्य स्त्रोत कृत्रिम होने के कारण इनका हमारे शरीर पर काफी ज्यादा हानिकारक प्रभाव पड़ता है। एलोपैथिक दवाएँ मुख्य रूप से सिंथेटिक प्रक्रियाओं से बनती हैं जिन्हें प्रयोगशालाओं में अन्वेषित और निर्मित किया जाता है। ये दवाएँ शुद्ध रूप से रसायन ही होती है। अत: हम जब भी कोई एलोपैथिक दवा लेते हैं इसका मतलब हम अपने शरीर में उस दवा के रसायन को ग्रहण करते हैं।
प्रत्येक दवा हमारे शरीर पर किसी न किसी तरह का प्रभाव डालती है। इन दवाओं द्वारा हमारे शरीर पर जो भी प्रभाव पड़ता है उसे फार्माकोलोजिकल इफेक्ट्स कहते हैं जो कि फायदेमंद और हानिकारक दोनों तरह के हो सकते हैं। ये इफेक्ट्स शरीर के हर हिस्से जैसे हृदय, यकृत, किडनी, पेट, आँते, फेफडे, मस्तिष्क, आँखें, स्मूथ और वोलंटरी मसल्स, आदि पर होते हैं, चाहे उसकी वहाँ जरूरत हो या न हो। शरीर के जिस हिस्से को इस प्रभाव की जरूरत होती है, वहाँ यह इफेक्ट फायदेमंद सकारात्मक प्रभाव (ट्रीटमेंट) बन जाता है तथा जहाँ इसकी जरुरत नहीं होती है वहाँ यह इफेक्ट हानिकारक नकारात्मक प्रभाव (साइड इफेक्ट) बन जाता है। हर दवा के कुछ न कुछ साइड इफेक्ट्स होते हैं जिनमे से कुछ सामान्य साइड इफेक्ट्स होते हैं जैसे उबकाई आना, उल्टी होना, जी घबराना, सरदर्द होना, चक्कर आना, घबराहट होना, उनींदापन, निद्रा आना, एसिडिटी होना, पेट में अल्सर हो जाना, पेट दुखना, कब्जी या दस्त होना, वजन बढऩा या घटना, शरीर में कंपकंपी होना, आदि। गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को ये दवाएँ लेते वक्त बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि बहुत सी दवाएँ इन पर बहुत से एडवर्स इफेक्ट दिखा सकती है। कुछ दवाओं के बहुत ज्यादा साइड इफेक्ट्स होते हैं जैसे कैंसर में ली जाने वाली दवाएँ, दिमाग पर असर करने वाली दवाएँ, कुछ एंटीबायोटिक्स, आदि। एंटीबायोटिक्स का बहुत ज्यादा प्रयोग भी बहुत घातक होता है क्योंकि धीरे-धीरे जीवाणु इनके आदि होकर इनके अनुसार ढल जाते हैं जिसके फलस्वरूप इन पर असर समाप्त होने लगता है। एंटीबायोटिक्स से रेसिस्टेंट जीवाणु सुपर बग के रूप में सामने आने लग गए हैं जिन पर सभी एंटीबायोटिक्स बेअसर होती है।
निश्चित रूप से हर दवा के इफेक्ट और साइड इफेक्ट दोनों होते हैं। अभी तक एलोपैथी में ऐसी कोई दवा नहीं बनी है जिसके साइड इफेक्ट न हों। दवा एक बीमारी को तात्कालिक रूप से समाप्त करती है परन्तु उसके साथ ही साथ दूसरी कई बीमारियों को भी जन्म देती है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि बीमारी हमेशा के लिए समाप्त नहीं होती है वरन कुछ वक्त के लिए उसके लक्षण प्रकट नहीं होते हैं। अत: हमें जहाँ तक हो सके एलोपैथिक दवाओं से तब तक दूर रहना चाहिए, जब तक कोई बहुत ज्यादा आवश्यकता नहीं हो।
– साभार : ज्वारभाटा