नई दिल्ली। एसजीपीजीआई में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित अन्य राहत कोष से मरीजों के इलाज के लिए मिलने वाली रकम से दवा घोटाला हुआ है। दो दिन की जांच में 23 मरीजों के नाम पर करीब 55 लाख की दवाएं निकाली गई हैं। एसजीपीजीआई हॉस्पिटल रिवॉल्विंग फंड से जुड़े ओपीडी फार्मेसी के आठ कर्मचारियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। साथ ही पांच प्रोफेसरों की आंतरिक जांच कमेटी बनाई गई है। दरअसल घोटाले के खुलासे के बाद एसजीपीजीआई के कर्मचारी व अफसर दहशत में हैं।
एक अधिकारी ने आशंका जताई कि पूरे मामले की जांच हुई तो एनएचएम जैसे बड़े घोटाले का खुलासा होगा। लंबे समय से चल रहे इस खेल की कई बार सुगबुगाहट भी हुई, लेकिन रैकेट से जुड़े लोगों की पहुंच व संस्थान के अधिकारियों-कर्मचारियों की जुगलबंदी देख चुप्पी साध ली गई। साथ ही सूत्र बताते हैं कि प्लास्टिक सर्जरी के मरीज के खाते में आए रुपये को कैंसर की दवा के नाम पर भी खर्च करने का मामला निकला है। जांच में पता चला कि ओपीडी फार्मेसी से ज्यादातर दवाएं कैंसर व अन्य हार्मोनल बीमारियों से जुड़ी निकाली गई हैं। इनके एक-एक इंजेक्शन की कीमत 20 से 50 हजार रुपये के बीच होती है।
इतना ही नहीं दवा पर्ची पर लगी मुहर और चिकित्सकों से हस्ताक्षर भी फर्जी हैं। गौरतलब है कि एसजीपीजीआई में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहायता कोष, असाध्य मरीजों, बीपीएल मरीजों के इलाज के लिए रुपये आते हैं। मर्ज के अनुसार स्टीमेट बनता है। संबंधित कोष से मिले रुपये एसजीपीजीआई के खाते में पहुंचते हैं। इन्हें संबंधित मरीज के नाम से अलग खाता बनाकर रखा जाता है। फिर मरीज की बुक बनाई जाती है, जिस पर उसके व एक तीमारदार की फोटो होती है। डॉक्टर इसी बुक पर दवाएं लिखते हैं। उनके हस्ताक्षर, मुहर लगने के बाद मरीज या तीमारदार ओपीडी फार्मेसी काउंटर पर जाता है। वहां कर्मचारियों के मिलान के बाद दवाएं दे दी जाती हैं। जितने की दवा दी जाती है, उतने रुपये एकाउंट में कम होते रहते हैं। रुपये खत्म होने पर मरीज को जानकारी दे दी जाती है।
दरअसल एसजीपीजीआई में नाम बदलने व फर्जी हस्ताक्षर का खेल नया नहीं है। करीब छह महीने पहले एक मामला सामने आया था, जिसमें जांच रिपोर्ट पर मरीजों के नाम बदले जा रहे थे। अधिकारियों ने जांच कराई तो सामने आया कि मरीजों की रिपोर्ट चोरी करने के बाद परिसर से बाहर ले जाकर नाम बदल दिए जा रहे थे। इसे लेकर मुकदमा कराया गया था। तो वहीं एसजीपीजीआई में हुए दवा घोटाले का मास्टरमाइंड अंदर का व्यक्ति बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार एक वरिष्ठ अधिकारी के सहायक के रिश्तेदार और हरदोई निवासी एक युवक पर भी शक है।
सूत्रों का कहना है कि इस युवक ने कुछ समय पहले एसजीपीजीआई के पास के निजी अस्पताल में एचआरएफ की दवाएं भेजी थीं। वहां के डॉक्टरों ने एसजीपीजीआई प्रशासन को सूचना भी दी, लेकिन मामला रिश्तेदार का होने से प्रकरण पर पर्दा डाल दिया गया। एसजीपीजीआई से जुड़े कुछ कर्मचारियों ने यह भी बताया कि कई बार संबंधित युवक से वे परिचित को एचआरएफ से सस्ती दर पर दवाई दिलवा चुके हैं। गौरतलब है कि हॉस्पिटल रिवाल्विंग फंड के तहत चिकित्सा संस्थान में कमेटी बनाई जाती है। यह दवा, सर्जिकल सामग्री की खरीद का लेखा-जोखा रखती है। एचआरएफ दवा कंपनियों से सीधे टेंडर प्रक्रिया कराती है।
इससे दवा कंपनी से सीधे चिकित्सा संस्थान को दवा मिलने लगती हैं। यह 20 से 50 फीसदी तक सस्ती होती है। फिर इन्हें मरीजों को उपलब्ध कराता है। एक तरह से दवा कंपनी और चिकित्सा संस्थान में सीधा करार होता है। भारी मात्रा में दवाओं के करार से कंपनियां भी न्यूनतम मूल्य पर दवाएं देती हैं। इन दिनों एसजीपीजीआई के एचआरएफ टेंडर मूल्य पर केजीएमयू, लोहिया संस्थान और कैंसर संस्थान में दवाएं-सर्जिकल उपकरण उपलब्ध कराए जा रहे हैं। दरअसल एसजीपीजीआई में दवा रैकेट लंबे समय से चल रहा है। निष्पक्ष तरीके से जांच हो तो कई अधिकारी, कर्मचारी चपेट में आएंगे। एसजीपीजीआई में पूरे प्रदेश से मरीज आते हैं।
ज्यादातर विधायक, सांसद सहित अन्य वीवीआईपी का इलाज यहीं से चलता है। सामान्य मरीज विभिन्न कोषों से स्टीमेट अनुसार रुपये स्वीकृत कराते हैं तो वीवीआईपी मरीजों के लिए भी विभिन्न मदों से रुपये आते हैं। पीजीआई के सूत्र अनुसार दवा रैकेट पहले से चल रहा था। यही वजह है कि एचआरएफ में काम करने के लिए अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों के बीच लॉबिंग होती है। अपने कर्मचारियों को एचआरएफ में सेट करने को लेकर कई बार उच्चाधिकारियों के बीच भी तनाव देखने को मिला है। एसजीपीजीआई प्रशासन की ओर से दर्ज कराई रिपोर्र्ट में ज्यादातर संविदाकर्मी हैं। हालांकि, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि पूरे खेल में कई वरिष्ठ अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक हैं।
बता दें कि एसजीपीजीआई में विभिन्न मदों से 10 हजार से ज्यादा मरीजों का नियमित इलाज चल रहा है। कोरोना काल में मरीजों, तीमारदारों के देर से आने पर यहां के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मिलीभगत से घोटाला किया गया। बिना मरीज को दवा दिए उसके नाम से लाखों की दवाएं निकाल ली गईं। सूत्र बताते हैं कि एक मरीज की ओर से लिखित शिकायत की गई कि ओपीडी फार्मेसी के काउंटर पर उसे बताया गया कि खाते में रुपये नहीं बचे हैं, जबकि उसने एक बार भी दवा नहीं ली है। शासन की ओर से उसके खाते में करीब दो लाख रुपये स्थानांतरित किए गए हैं।
इसी बीच एक विभाग में ओपीडी फार्मेसी का कर्मचारी दवा पर्चे पर हस्ताक्षर कराने पहुंचा। उस पर एक डॉक्टर के साइन थे, जिसे देखकर दूसरे डॉक्टर को शक हुआ। सख्ती से पूछताछ की तो कर्मचारी स्पष्ट जवाब नहीं दे पाया। इन दो प्रकरण के बाद पड़ताल की गई तो 23 मरीजों के खाते से करीब 55 लाख रुपये निकाले जाने का खुलासा हुआ। पीजीआई थाना प्रभारी निरीक्षक आशीष द्विवेदी के मुताबिक संविदा कर्मचारी नृपेंद्र सिंह, नसीम खान, पंकज कुमार सिंह, आशुतोष कुमार यादव, अरविंद कुमार, विनीत शुक्ला, हरिशंकर तिवारी और अनिल यादव के खिलाफ केस दर्ज कराया गया है।
एसजीपीजीआई सीएमएस प्रो. सोनिया नित्यानंद ने कहा कि यह गंभीर मामला है। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। एसजीपीजीआई की आंतरिक कमेटी भी जांच कर रही है। एसजीपीजीआई के निदेशक प्रो. आरके धीमान ने कहा कि कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई होगी। जो भी दोषी होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।