शिमला। नशा माफिया ने युवाओं को अपने जाल में फंसाने के लिए नए हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं। नशीली दवाइयों के लिए दवा की दुकानें पहले आसान स्रोत थीं। अब प्रदेश में नशीली दवाइयों की चलती-फिरती दुकानें युवाओं को नशेड़ी बना रही हैं। ये दुकानें प्रतिबंधित दवाइयों को युवाओं तक पहुंचा रही हैं। नशा माफिया ने अपने काले कारोबार के लिए नए तरीके ढूंढ निकाले हैं। माफिया से जुड़े लोग नशे के लिए प्रयोग किए जाने वाले 100 से 500 कैप्सूल को जेब या बैग में डालकर स्कूलों व कॉलेजों के आसपास घूमते रहते हैं।
नशे के आदी हो चुके युवा इन लोगों के संपर्क में रहते हैं। वे इनसे नशे के लिए कैप्सूल या प्रतिबंधित दवाइयां खरीदते हैं। कई दवा विक्रेता अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में युवाओं को प्रतिबंधित दवाइयां व कैप्सूल बेचते हैं। हिमाचल में ट्रेमाडोल दवा का सबसे अधिक नशे के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है। यह दवा शेड्यूल एच-1 में आती है जिसे डॉक्टर की पर्ची के बिना नहीं बेचा जा सकता है। केंद्र सरकार ने भी इस दवा को एनडीपीएस के दायरे में लाया है। अब बिना बिल के ट्रेमाडोल दवा की खेप पकड़े जाने पर आरोपित को दस साल की सजा का प्रावधान किया गया है। दवा विक्रेताओं व फार्मा उद्योगों पर नजर रखने के लिए दवा नियंत्रक विभाग है। यह विभाग ड्रग इंस्पेक्टरों की कमी से जूझ रहा है।
विभाग में ड्रग इंस्पेक्टरों के 44 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 16 ही पद भरे गए हैं। ड्रग एंड कॉस्मेटिक अधिनियम के तहत यदि कोई दवा विक्रेता डॉक्टर की पर्ची के बिना नशे के लिए दुरुपयोग की जाने वाली दवा बेचता है तो उसकी दुकान का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। आरोप सिद्ध होने पर तीन से पांच साल की सजा का प्रावधान है। राज्य दवा नियंत्रक नवनीत मारवाह के अनुसार विभाग समय-समय पर दवा की दुकानों का निरीक्षण करता है। नशे के लिए दुरुपयोग होने वाली दवाइयों को डॉक्टर की पर्ची के बिना नहीं बेचा जा सकता है। नशे की दवा के काले कारोबार में सबसे अधिक युवा संलिप्त हैं।