अम्बाला/पुणे, बृजेंद्र मल्होत्रा। यदि दवा व्यापार में कोई विक्रेता अनियमितता कर दे तो औषधि प्रशासन का चाबुक बेहिसाब बरसता है। जब तक कोई संगठन बीच-बचाव करने न आए। यदि गलती से कोई धनाढ्य ऐसा करे तो वहां जानकारी होते हुए भी औषधि प्रशासनिक अधिकारी अनदेखा करने में देर नहीं लगाते और मुंह मोडक़र अपनी चाल चलते रहते हैं। देश के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश हैं कि कोई भी दवा व्यापारी दवा लाइसेंस के बिना काम नहीं कर सकता। जिस पर लेशमात्र अमल कर देश में मेडपल्स के बैनर तले दवा व्यापार कार्य करने वाली विदेशी कम्पनी द्वारा दवा विक्रय की लय तोड़े बिना ड्रग्स लाइसेंस के लिए शायद आवेदन किया या नहीं। आमजन की आंखों में धूल झोंकने के मन से ’D.L. No – applied for’ लिख कर दवा व्यापार करना शुरू कर दिया। मेडपल्स ने ‘ए यूनिट ऑफ ऑप्टिवाल हेल्थकेयर सोलुशन प्राइवेट लिमिटेड’ पुणे महाराष्ट्र द्वारा 7 दिसंबर 2019 को बिल या केश मीमो का नाम बदलकर डोकेट रजिस्टर्ड न. 51486 के माध्यम से रुपए 1585.50 का दवा व्यापार किया गया। यह परवाना सार्वजनिक भी हो गया। क्या यह राज्य औषधि प्रशासन के किसी भी अधिकारी के टेबल पर नहीं पहुंचा। यदि पहुंचा तो औषधि प्रशासनिक अधिकारियों ने इस का क्या संज्ञान लिया? यह तो एक ही परवाना सामने आया न जाने कितने परवाने जारी किए होंगे कितनी और कौन सी दवाएं विक्रय की होंगी?
इस बारे कई राज्यों के मौजूदा व पूर्व औषधि नियंत्रकों से बात सांझा कर अनियमितता की सजा बारे पूछा कि यदि आपके अधिकार क्षेत्र में ऐसी अनिमितता होती तो क्या कार्यवाही करते, इस पर सभी ने अविलम्ब प्रतिष्ठान को सील व ड्रग्स एन्ड कॉस्मेटिक एक्ट के तहत कार्यवाही की बात कही। महाराष्ट्र के पूर्व कमिश्नर एफडीए महेश झगड़े ने मेडिकेयर न्यूज प्रतिनिधि को बताया कि किसी भी राज्य या केंद्र में एफडीए कार्यालय में जितने भी अधिकारी तैनात हैं, वे सभी केंद्र सरकार या राज्य सरकार से मेहनताना इसीलिए पाते हैं कि ड्रग्स एन्ड कॉस्मेटिक नियमों की पालना नियमानुसार करें। बिल पर आवेदित (अप्लायड फॉर) शब्द का उपयोग सरासर गलत है। मेरा मानना है कि यदि मेडपल्स ने ऐसी गलती की है तो विभाग को कड़ा संज्ञान लेना ही चाहिए अन्यथा राज्य सरकार द्वारा एफडीए के सचिव व कमिश्नर को तुरंत प्रभाव से सस्पेंड कर देना चाहिए।