हैदराबाद: अमेरिका के जेनेरिक दवा बाजार में पैठ रखने वाली भारतीय फर्मों पर गाज गिरने की संभावना बनी हुई है। इन कंपनियों पर प्रतिस्पर्धा संबंधी एंटी-ट्रस्ट कानूनों का उल्लंघन करके कृत्रिम रूप से दवाओं के दाम बढ़ाने का आरोप लगा है। प्रतिस्पर्धा कम रखने के लिए भारतीय दवा कंपनियां जेनेरिक दवा बाजार को आपस में बांटने पर राजी हो गईं। इससे कुछ दवाओं के दामों में एक हजार फीसदी तक का उछाल देखा गया है।
पहले अरबिंदो, टेवा व माइलान समेत छह जेनेरिक दवा निर्माताओं को ही इसके दायरे में रखा गया था। अब इस संबंध में आई शिकायतों के बाद 12 और दवा फर्म अमेरिकी जांच के दायरे में आ सकती हंै। इनमें सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज, ग्लेनमार्क और जाइडस जैसी कंपनियों के नाम भी शामिल हैं।
वॉशिंगटन के अटॉर्नी जनरल (एजी) बॉब फर्गुसन ने इस संबंध में एक बयान जारी कर कहा है कि उनके साथ 45 राज्यों के एजी ने संघीय अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इसमें कोर्ट से लंबित शिकायतों का जांच दायरा बढ़ाने का अनुरोध किया गया है। इसके तहत दायरे में आने वाली कंपनियों को छह से बढ़ाकर 18 और प्रभावित दवाओं की संख्या को दो से बढ़ाकर 15 करने की मांग की है। इसमें एक्टाविस होल्डो, एक्टाविस फार्मा, एसेंड लेबोरेटरीज, एपोटेक्स कॉर्प, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज, एमक्योर फार्मा, ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स, लैननेट कंपनी, पार फार्मा सैंडोज, सन फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्रीज और जाइडस फार्मा (यूएसए) का नाम है। अगर कंपनियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होती तो जेनेरिक दवाओं के दाम 80 फीसदी तक नीचे आ सकते थे।
कंपनी इस मामले में सभी अमेरिकी नियामकों और एजेंसियों को पूरा सहयोग करेगी। वर्ष 2015 में अमेरिका में 74.5 अरब डॉलर (करीब 4,76,800 करोड़ रुपए) की जेनेरिक दवाएं बिकी थीं। इस मामले में डॉ. रेड्डीज का कहना है कि उसे अमेरिकी न्याय विभाग की ओर से जारी जांच के बारे में जानकारी है। माइलान ने अपने बयान में कहा है कि उसे अपनी तरफ से जांच करने पर ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला। अन्य कंपनियों की ओर से इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है। गौरतलब है कि भारतीय फार्मा कंपनियों का अमेरिका के जेनेरिक दवा बाजार के एक बड़े हिस्से पर कब्जा है।