नई दिल्ली। ड्रग विभाग एक ओर कई फार्मा कंपनियों को बचाने की कोशिश में दवाइयों में साल्ट कम होने पर भी अमानक नहीं माने जाने का निर्णय ले रहा है, वहीं दूसरी ओर कई ऐसी कंपनियां भी हैं जिन पर वर्ष 2015 में कार्रवाई किए जाने के बाद भी पांच साल में न्यायिक स्वीकृति जारी नहीं की गई। नियमानुसार 15 दिन में ही विभाग की ओर से न्यायिक स्वीकृति जारी की जानी चाहिए। कई कंपनियां तो ऐसी थीं, जिनसे एक से दो करोड़ तक की दवाएं बिना लाइसेंस के पकड़ी गई थीं।
गौरतलब है कि वर्ष 2017 के जून माह में ड्रग विभाग ने कमला एंटरप्राइजेज, जयपुर से डेढ़ करोड़ की नकली दवा पकड़ी। पूरे प्रदेश में 60 से अधिक जगह पर कार्रवाई की गई। ताज्जुब की बात यह कि केवल जयपुर में ही एफआईआर दर्ज की गई, अन्य किसी भी जगह नहीं। यहां तक तक जयपुर में भी मामले में आज तक न्यायिक स्वीकृति नहीं दी गई। वर्ष 2017 के अगस्त माह में आमेर में घनश्याम के यहां 17 लाख के कफ सीरप पकड़े गए। बिना लाइसेंस के बेचे जा रहे सीरप मामले में भी न्यायिक स्वीकृति का इंतजार है। इसी तरह, वर्ष 2016 में ही सिविल लाइन में अप्पा स्वामी की ऑक्युलर डिवाइस प्राइवेट लिमिटेड से करीब दो करोड़ 95 लाख के लैंस जब्त किए गए थे। ये सब बिना लाइसेंस के थे। इतने साल बीतने के बाद भी न्यायिक स्वीकृति जारी नहीं हो सकी। वर्ष 2015 के नवम्बर माह में अव्या हेल्थकेयर, दुर्गापुरा में करीब एक करोड़ की नकली दवाएं पकड़ी गई। यहां से लिंक मिलने पर करौली में कार्रवाई की गई। जयपुर मामले में तो दोषी को सजा तक हो गई लेकिन करौली मामले में आज तक न्यायिक स्वीकृति ही नहीं दी गई। ऐसे में विभाग की ओर से की जाने वाली कार्रवाई संदेह के घेरे में ही हैं। सरकार ने अब इसकी जांच कराने को कहा है कि दवाइयों में साल्ट कम होने पर भी अमानक नहीं माने जाने का निर्णय क्यों और किसके कहने पर लिया गया। कमेटी बनाने से पहले किसकी अनुमति ली गई और जब कमेटी ने साल्ट कम की अनुशंसा की तो सरकार स्तर पर किस से पूछ कर निर्णय को अमल में लाया गया।