नई दिल्ली। कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच डॉक्टर्स पूरी मेहनत के साथ लोगों को इस बीमारी से बचाने में जुटे हुए हैं। स्वास्थ्यकर्मियों की देशभर में सराहना की जा रही है। कोरोना संक्रमण से पीड़ित मरीजों के इलाज के दौरान डॉक्टर्स को साफ-हवा और पानी तक को तरसना पड़ रहा है। एम्स के ट्रॉमा सेंटर में एक वरिष्ठ स्थानीय डॉक्टर डॉ. सायन नाथ के मुताबिक डॉक्टरों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

बातचीत के दौरान नाथ ने डॉक्टर्स के सामने आ रही चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि एक बार आईसीयू में जाने के बाद  हम पानी नहीं पी सकते और इसके अतिरिक्त हम कोई काम नहीं कर सकते। हमें 6-7 घंटे लगातार आईसीयू में रहना पड़ता है। उन्होंने बताया कि शुरुआत में कोरोना के मामले कम थे तो हमने सभी आईसीयू को कोरोना संक्रमित लोगों के इलाज के लिए नहीं रखा था लेकिन  जैसे-जैसे मामले बढ़ते गए हमने ट्रामा सेंटर के ग्राउंड फ्लोर पर नया आईसीयू सेंटर बनाया।

उन्होंने बताया कि लगातार कोरोना के अलग- अलग मामले और इनमें बदलाव के चलते आईसीयू सेंटर के प्रोटोकॉल भी बदलने पड़ते हैं। वेंटिलेटर्स और अन्य चीजों  की मॉनिटरिंग करनी पड़ती है। पीपीई किट पहनने और मुंह ढके होने के चलते  मुंह से भाप बनती है तो चश्में से सब धुंधला दिखने लगता है। कान भी कवर होते हैं तो सुनने में दिक्कत होती है, लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए ये सब पहनना भी जरूरी है।

यही नहीं डॉक्टर सायन ने एक मौजूदा हालात को लेकर एक ब्लॉग भी लिखा है। जिसमें उन्होंने विस्तार से चुनौतियों का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि हम दैनिक दिनचर्या की सामान्य चीजें मसलन खाना-पानी, ताजी हवा लेना और यहां तक बाथरूम तक जाना भूल जाते हैं। जब से एक शिफ्ट में एक पीपीई मिलती है, टॉयलेट जाने से बचने के लिए हमें ‘अडल्ट डायपर्स’ पहनने पड़ते हैं। किट में डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मरीजों की जांच करना किसी मुश्किल चुनौती से कम नहीं। हमें किट के अंदर घुटन सी महसूस होती है साथी डॉक्टर्स से बातचीत करने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है लेकिन इलाज के दौरान सावधानी बरतना काफी अहम है इस वजह से हमें ऐसा करना पड़ता है।