नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार के एक्सपर्ट पैनल ने दवाओं की खोज करने वाली तेलंगाना की कंपनी को कोविड-19 के इलाज के लिए टेपवर्म संक्रमण में इस्तेमाल होने वाली दवा निक्लोसामाइड का परीक्षण करने की इजाजत दे दी है। सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (एसईसी)—जो नई दवाओं, टीकों और क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी के संबंध में आने वाले आवेदनों पर देश के सर्वोच्च नियामक ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) को परामर्श देती है—ने जानवरों में परजीवी कीटाणुओं के संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एक श्रेणी यानी एंटीहेल्मिनिटिक मेडिसिन पर दो चरण के क्लीनिकल ट्रायल को मंजूरी दी है।

यह दवा संक्रमण का कारण बनने वाले टेपवर्म को मार देती है और इसके बाद वह मल के जरिये बाहर निकल जाते हैं। पिछले साल, अमेरिका ने कोविड-19 के खिलाफ दवा के दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षणों की शुरुआत की थी. ये अभी चल रहे हैं। 2004 में सीवियर एक्यूट रेस्पायरेटरी सिंड्रोम (सार्स) के प्रकोप के दौरान, अध्ययनों से पता चला कि ‘निक्लोसामाइड नए खोजे गए कोरोनावायरस सार्स-कोव का संक्रमण बढ़ने से रोकने में कारगर थी।

महामारी के दौरान निक्लोसामाइड को ‘सार्स कोव संक्रमण के प्रभावी उपचार के लिए एक उम्मीद भरी दवा’ होने का दावा किया गया था। संक्रामक रोग अनुसंधान संस्थान, इंस्टीट्यूट पाश्चर कोरिया ने कोविड-19 का संभावित उपचार हो सकने वाली दवाओं की श्रेणी में इसे पहले नंबर पर रखा है। दूसरे चरण के परीक्षण को मंजूरी देने का निर्णय एसईसी ने 23 मार्च की एक बैठक के दौरान लिया था. बैठक के मिनट्स सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) की वेबसाइट पर अपलोड किए गए—स्वास्थ्य मंत्रालय की यह इकाई देश में दवाओं और टीकों की गुणवत्ता को नियंत्रित करने का जिम्मा संभालती है।