नई दिल्ली। अब क्यूआर कोड के जरिए असली और अमानक दवाओं की पहचान कर सकेंगे। सरकार ने अमानक दवाओं पर रोक लगाने के लिए क्यूआर कोड सिस्टम लागू करने के निर्देश दिए है। उपभोक्ता टैबलेट से लेकर कफ सीरप तक किसी भी दवा पर मौजूद क्यूआर कोड को मोबाइल से स्कैन कर दवा की असलीयत आसानी से जान सकेंगे।
फार्मास्युटिकल मंत्रालय के अनुसार सरकारी अस्पतालों, जन औषधि केंद्रों पर सप्लाई की जाने वाली दवाओं पर आगामी एक अप्रैल से क्यूआर कोड अनिवार्य होगा। वहीं, बाजार में बिकने वाली अन्य सभी दवाओं के लिए यह व्यवस्था एक अप्रैल, 2020 से लागू करने का आदेश है।
दवा कंपनियों ने मंत्रालय के आदेश के अनुपालन की तैयारियां शुरू कर दी हैं। क्यूआर कोड से उपभोक्ताओं के साथ सीधे तौर पर कंपनियों को भी फायदा मिलेगा। नकल से हर साल कई हजार करोड़ रुपये का नुकसान देश में व्यापार करने वाली दवा कंपनियों को होता है।
दूसरी ओर मरीज को अमानक दवा असर नहीं करती और उसका मर्ज बढ़ जाता है। मंत्रालय के मुताबिक, क्यूआर कोड में दवा की पूरी जानकारी छिपी होगी। इसमें बैच नंबर, सॉल्ट, कंपनी का नाम, कीमत, हेल्पलाइन नंबर, जारी करने की तिथि और खराब होने की तिथि शामिल होगी।
मंत्रालय का कहना है कि दवा की नकल बाजार में उतारने वालों के लिए क्यूआर कोड की नकल तैयार करना असंभव है, क्योंकि यह हरेक बैच नंबर के साथ बदलेगा। ऐसे में देश को नकली दवाओं से पूरी तरह से मुक्ति मिलेगी। मौजूदा समय असली और नकली दवा की पहचान करना उपभोक्ताओं के लिए टेढ़ी खीर है।
एसोचैम के मुताबिक, देश में करीब 25 फीसदी दवाइयां अमानक रूप में बिकती हैं। भारत इस मामले में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है, जहां यह व्यापार करीब चार हजार करोड़ रुपये का है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत में दस में से एक दवा अमानक है।
उद्योग जगत भी लंबे समय से इस समस्या का हल खोज रहा था, जो तकनीक ने निकाल दिया। गौरतलब है कि देशभर के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर अमानक दवाओं का जखीरा आए दिन पकड़ा जाता है। ऐसे में नकली दवा उद्योग से निजात दिलाने में क्यूआर कोड व्यवस्था भविष्य में मील का पत्थर साबित होगी।