नई दिल्ली: दूध-दही की नदिया बहने, श्वेत क्रांति जैसी संज्ञाओं से अलंकृत भारत में दूध और इसे बनने वाले खाद्य पदार्थों में ही सबसे ज्यादा मिलावट होती है और बीमारियों के बढऩे का यह मुख्य कारण है। इस कारण से भारत को पोलियो मुक्ति का रास्ता दिखाने वाले केंद्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन बेहद चिंतित है। हालांकि इस चिंता को दूर करने के लिए वह संजीदा प्रयास कर रहे हैं। प्रयासों की इस कड़ी में उन्होंने देश की सभी राज्य सरकारों से अपील की है कि दूध में मिलावट को लेकर जनता के बीच जागरूकता फैलाएं और मिलावटखोरों से कड़ाई से निपटे।
उन्होंने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वे दूध में मिलावट का पता लगाने के लिए पिलानी स्थित सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट (सीरी) में विकसित किए गए ‘क्षीर स्कैनर’ उपकरण के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल को बढ़ावा दें। देश के विभिन्न राज्यों की मीडिया से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संवाद करते हुए हर्षवर्धन ने कहा कि देश के 68 फीसद दूध के नमूनों में मिलावट पाई गई है। दूध में मिलावट रोकने के लिए सीरी द्वारा विकसित यह उपकरण बेहद कारगर है। यह पांच से दस पैसे की लागत में 40 से 45 सेकेंड के भीतर दूध में मिलावट की सटीक जानकारी दे देता है। इस उपकरण की कीमत तकरीबन 70,000 रुपये है। देश में इस उपकरण को 50 स्थानों पर लगाया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें चाहेंगी तो इस उपकरण के इस्तेमाल से दूध में मिलावट को रोकने में बड़े पैमाने पर मदद मिलेगी। यह इसलिए भी कारगर होगा,
क्योंकि अधिकारी-कर्मचारी सैंपल तो लेकर चले जाते थे, लेकिन उनकी जांच रिपोर्ट का पता नहीं होता था कि कब आएगी, और इस अवधि में दोषी, दोषमुक्त होने के सारे रास्तों को पार कर जाता है और यह बात कई बार मीडिया की सुर्खियां बनी है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ऐरोमा मिशन के तहत बुंदेलखंड समेत उप्र के विभिन्न हिस्सों में सगंध और औषधीय पौधों की खेती के लिए हरसंभव सहयोग और समर्थन देने के लिए तत्पर है। इसके लिए किसानों के समूहों के साथ राज्य सरकार से भी समन्वय स्थापित किया जा रहा है। यह भी बताया कि उप्र के पूर्वाचल के जिलों में इंसेफ्लाइटिस के प्रकोप से निपटने के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रलय के साथ मिलकर इस गंभीर बीमारी के उन्मूलन के उपाय तलाशने में जुटा है।