प्रीएक्लेम्प्सिया को कई बार ‘टॉक्सेमिया ऑफ प्रेग्नेंसी’  भी कहते हैं। यह गर्भावस्था के दौरान होने वाली एक ऐसी समस्या है, जो 100 गर्भवती महिलाओं में से सिर्फ 2 को होता है। प्रीएक्लेम्प्सिया के मुख्य लक्षणों में हाई ब्लड प्रेशर और यूरिन में प्रोटीन की मात्रा अधिक होना शामिल है। यह एक खतरनाक स्थिति है, जो गर्भवती महिला के साथ-साथ उसके गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए भी जानलेवा साबित हो सकता है।

क्या है प्रीएक्लेम्प्सिया

गर्भावस्था के पूरे नौ महीने महिलाओं के लिए कई तरह की जटिलताओं और समस्याओं से भरा होता है। आज भी भारत में गर्भावस्था से संबंधित कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर जागरूकता का अभाव है। भारत में प्रीएक्लेम्प्सिया से लगभग 8 से 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं पीड़ित हैं। यह एक अतिसंवेदनशील विकार है। हाई ब्लड प्रेशर इसके मुख्य लक्षणों में से एक है। इसमें हाथों-पैरों में सूजन भी हो जाता है। उच्च रक्तचाप होना किसी भी प्रेग्नेंट महिला के लिए एक गंभीर समस्या हो सकता है।

प्रेग्नेंसी में हाई ब्लड प्रेशर ठीक नहीं

गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप महिलाओं को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। अगर आपको पहले से ही उच्च रक्तचाप की समस्या है, तो भी आपके लिए पूरे नौ महीने आसान नहीं होंगे। गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप होने से प्रीएक्लेम्प्सिया और एक्लेम्पिया जैसे विकार हो सकते हैं। ये दोनों ही मां और बच्चे के जीवन को खतरे में डाल सकते हैं। गर्भावस्था के 20 सप्ताह बहुत संवेदनशील होते हैं। ऐसे में प्रीएक्लेम्प्सिया की समस्या बिना किसी लक्षण के विकसित हो सकता है। हां, अपने बढ़ते ब्लड प्रेशर पर नजर रखें। यदि आपको सिर में तेज दर्द, देखने में समस्‍या, मतली, उल्टी, लिवर या किडनी से संबंधित समस्याएं हों, तो डॉक्टर को बताएं।

प्रीएक्लेम्प्सिया से धमनियां होती हैं प्रभावित

प्रेगनेंट महिलाओं के लिए यह विकार अधिक जटिलता उत्‍पन्‍न कर सकता है। यह विकार धमनी को प्रभावित कर सकता है, जो प्लेसेंटा को रक्त प्रदान करता है। इससे भ्रूण का विकास रुक सकता है। इससे प्रीमैच्योर डिलीवरी होने की संभावना बढ़ जाती है। दूसरे गंभीर विकार ‘हेल्‍प सिंड्रोम’ का कारण बन सकता है। अंगों को क्षतिग्रस्त या स्ट्रोक के साथ ही हृदय संबंधी बीमारियों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

प्रीएक्लेम्प्सिया के रिस्क फैक्टर

कई कारणों से प्रेग्नेंसी में प्रीएक्लेम्प्सिया की समस्या उत्पन्न होती है-
फर्स्ट प्रेग्नेंसी (2-8 % होने की संभावना)
मल्टीपल प्रेग्नेंसी
हाई ब्लड प्रेशर की समस्या
किडनी डिजीज ( 40 % तक होने की संभावना)
डायबिटीज (20 % होने की संभावना)
वजन अधिक होना
अधिक उम्र में मां बनना

प्रीएक्लेम्प्सिया के कारण

जेनेटिक फैक्टर्स
ब्लड वेसल से संबंधित समस्या
ऑटोइम्यून डिसऑर्डर
35 वर्ष की उम्र के बाद मां बनना
टीन एज में प्रेग्नेंट होना
पहली बार प्रेग्नेंट होना
डायबिटीज होना
किडनी डिसऑर्डर होना

प्रीएक्लेम्प्सिया के लक्षण

लगातार सिर दर्द होना
चेहरे और हाथों में सूजन
अचानक से वजन बढ़ना
आपकी दृष्टि में परिवर्तन
ऊपरी पेट में दर्द रहना

निदान और जांच

शारीरिक परीक्षा के दौरान, डॉक्टर यह पता लगाने की कोशिश करता है कि आपका रक्तचाप 140/90 मिमी एचजी या उससे अधिक है या कम। यूरिन और ब्लड टेस्ट किया जाता है। आपके पेशाब में प्रोटीन, असामान्य लिवर एंजाइम और प्लेटलेट्स स्तर की भी जांच की जा सकती है। गर्भ में पल रहे भ्रूण (Fetus)को भी मॉनिटर करने के लिए नॉनस्ट्रेस टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में शिशु जैसे-जैसे गर्भ में हिलता-डुलता है, उसके आधार पर हार्ट रेट में होने वाले बदलावों को मॉनिटर किया जाता है। साथ ही अल्ट्रासाउंड के जरिए फ्लूइड लेवल, शिशु की सेहत को चेक किया जा सकता है।

प्रीएक्लेम्प्सिया का इलाज

गर्भावस्था के दौरान प्रीएक्लेम्प्सिया का उपचार बच्चे की डिलीवरी है। ज्यादातर मामलों में, यह रोग को बढ़ने से रोकता है। यदि आप प्रेग्नेंसी के 37वें सप्ताह में पहुंच चुकी हैं, तो डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी करते हैं। यह सामान्य प्रॉसेस है और इस दौरान बच्चा पर्याप्त रूप से विकसित हो जाता है और इसे प्रीमैच्योर बेबी नहीं कहा जाता है। यदि आपको प्रीएक्लेम्प्सिया 37वें सप्ताह से पहले होता है, तो डॉक्टर आपके और आपके बच्चे की सेहत पर गौर करते हुए डिलीवरी करने का फैसला लेते हैं। इसके लिए कई फैक्टर जिम्मेदार होते हैं जैसे आपके बच्चे की गर्भकालीन आयु, लेबर पेन शुरू होना, प्रीएक्लेम्प्सिया कितना गंभीर हो चुका है।