लखनऊ। केजीएमयू में जांच प्रक्रिया बंद रहने से फार्मा कंपनियां धड़ल्ले से निम्न स्तर की दवा सप्लाई करने में लगी हैं। इससे मरीजों की सेहत से खिलवाड़ किया जा रहा है। सीएमएस डॉ. एसएन शंखवार ने स्पष्ट कहा है कि बीते साल दवाओं की रेंडम जांच करवाई गई थीं। रेंडम जांच इस बार नहीं हुई है। अब जो दवाएं संदिग्ध लगेंगी, उनकी लैब टेस्टिंग दोबारा करवाई जाएगी। जिस कंपनी की दवा में गड़बड़ी पाई जाएगी, उसे ब्लैक लिस्टेड किया जाएगा। गौरतलब है कि पूर्व कुलपति प्रो. रविकांत ने केजीएमयू में दवाओं के लिए रेंडम जांच की व्यवस्था की थी। पूर्व कुलपति प्रो. रविकांत ने दवाओं की रेंडम जांच के लिए कमेटी गठित की थी। इसमें फार्माकोलॉजी के चिकित्सक, मेडिसिन, सर्जरी, आइसीयू समेत आदि विभाग के विशेषज्ञ शामिल किए गए थे। यह डॉक्टर किसी दवा में संदेह होने पर उसका सैंपल कलेक्ट करवाते थे, साथ ही दवा पर से कंपनी का नाम, कंपोजीशन, बैच नंबर आदि पर लेवल लगाकर दिल्ली स्थित लैब में जांच के लिए गुप्त रूप से भेजते थे। वहीं लैब की रिपोर्ट के आधार पर कंपनी द्वारा सबमिट टेस्टिंग रिपोर्ट का मिलान किया जाता था। ऐसे में कपंनी घटिया दवा आपूर्ति करने में घबराती थीं।

अब केजीएमयू के अफसर दवा की जांच नहीं कर रहे। सालभर से उन्होंने आपूर्ति की गई दवाओं की रेंडम जांच ही नहीं कराई है। ऐसे में कंपनी टेस्टिंग रिपोर्ट के आधार पर घटिया दवाओं की धड़ल्ले से सप्लाई कर रही हैं। केजीएमयू में 50 से अधिक कंपनियां दवा सप्लाई कर रही हैं। इन सभी का मानक सिर्फ 100 करोड़ का टर्न ओवर रखा गया है। वहीं, गुणवत्ता के नाम पर कंपनी द्वारा टेंडर के वक्त जमा की गई एनएबीएल रिपोर्ट व सप्लाई के वक्त सबमिट संबंधित बैच दवा की टेस्टिंग रिपोर्ट ही रहती है। आपूर्ति की गई दवा कैसी है इसके क्रॉस मैचिंग की प्रक्रिया ठप कर दी गई है। ऐसे में टेंडर के वक्त कंपनियों द्वारा जमा किए गए सैंपल व आपूर्ति की जा रही दवा व सामान की क्रॉस मैचिंग भी नहीं हो रही है। लिहाजा कंपनियों ने इंट्री के वक्त उत्पादों का बेहतर सैंपल दिखाकर सूची में शामिल हो गए। बाद में मिलीभगत के जरिए नियमों को दरकिनार कर घटिया दवाएं खपा रहे हैं।