जयपुर। प्रदेश की सडक़ों पर ज्यादातर एंबुलेंस बिना जरूरी उपकरणों और दवाइयों के सरपट दौड़ रही हैं। एंबुलेंस में वह तमाम उपकरण होनेे चाहिए जिससे अस्पताल पहुंचाने के पहले प्राथमिक उपचार देकर मरीज की जान बचाई जा सके। जबकि देखने में यह आया है कि ज्यादातर चालक एंबुलेंस का लाइसेंस लेकर सिर्फ शव ढोने का ही काम कर रहे है। इनके वाहनों में न तो जरूरी उपकरण हैं और न जीवन रक्षक दवाएं। जयपुर के जेकेलोन, सवाई मानसिंह अस्पताल और कई प्राइवेट अस्पतालों के बाहर खड़ी एंबुलेंस का जायजा लिया तो पता चला कि अधिकतर एंबुलेंस में जरूरी उपकरण थे ही नहीं। ऑक्सीजन सिलेंडर, गंभीर मरीजों के इलाज में काम आने वाले उपकरण, दवाइयां यहां तक कि साधारण मरहम पट्टीवाला फस्र्टएड बॉक्स तक नहीं था। नियमों के अनुसार एक एम्बुलेंस में जान बचाने वाले उपकरणों के साथ-साथ मिनी आईसीयू भी होता है। साथ ही एंबुलेंस में उपकरण और दवाइयां भी होनी चाहिए।
इनमें ऑक्सीजन सिलेंडर, वितरण प्रणाली, ऑटो लोडर, फोल्ड होने वाला स्ट्रेचर, स्पाइन बोर्ड, पट्टियों सहित, पहियाकुर्सी, नैबुलाइजर मशीन सेक्शन प्रणाली, नब्ज ऑक्सीमीटर, वाटर डिस्पेंसर, इन्वर्टर, अग्निशामक यंत्र होने चाहिए। इन सब सुविधाओं पर ही चालक को एम्बुलेंस चलाने का लाइसेंस मिलता है। इस बारे में सीएमएचओ डॉ. नरोत्तम शर्मा का कहना है कि बिना जरूरी सुविधाओं के चल रही एम्बुलेंस की जांच की जाएगी। यह साइरन का गलत तरीके से इस्तेमाल करती है। यह गाडिय़ां एम्बुलेंस नाम जरूर लिखती है , लेकिन इनका वास्तव में कोई मतलब नहीं है।
विदेशों में हैं कड़े कानून: सिंगापुर में एम्बुलेंस से संबंधित कड़े कानून हैं। वहां इमरजेंसी और नॉन इमरजेंसी दो तरह की एम्बुलेंस होती हैं। ज्यादातर नॉन इमरजेंसी एम्बुलेंस पेशेंट्स को घर पहुंचाने जाती हैं। इमरजेंसी एम्बुलेंस में डॉक्टर व नर्स होना जरूरी है।