नई दिल्ली: दवा व्यापारियों ने जीएसटी के नियमों की जटिलताओं पर कार्यशाला में अपने विचार रखे। अधिकतर दवा व्यवसायियों का कहना था कि जीएसटी का नियम सरल बताया जा रहा है, लेकिन अभी तक उन्हें इसकी पूरी जानकारी नहीं है। सरकार को जीएसटी लागू करने के लिए अभी और समय देना चाहिए। व्यवसायी नियमों को समझेंगे, तभी उसका पालन कर पाएंगेे। जिन दवा दुकानदारों ने जीएसटी के तहत अपना रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है, उनके साथ नियमों के तहत काम करने में परेशानी आएगी। कई व्यवसाइयों ने कहा कि दवा को टैक्स स्लैब से अलग रखा जाना चाहिए। लाइफ सेविंग दवाओं पर टैक्स लगाना सरासर अनुचित है। जीएसटी में कई दवाओं पर टैक्स ज्यादा लगाया गया है। कैंसर, लीवर व किडनी रोग जैसी बीमारियों की दवाओं पर 12 फीसदी टैक्स है। डायबिटीज व हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों पर भी इतना ही टैक्स रखा गया है। पांच फीसदी टैक्स बहुत कम दवाइयों पर है, जिसकी बिक्री कम होती है। कई दवाओं पर 28 फीसदी टैक्स निर्धारित किया है, यह उचित नहीं है। अभी तक जो दवाएं छह फीसदी टैक्स देकर खरीदी गई हैं, उन पर छह फीसदी टैक्स और लेना है। इससे दुकानदारों को भारी नुकसान होगा। सरकार ने नये नियम में इनपुट टैक्स देने का प्रावधान तो किया है, लेकिन यह प्रक्रिया इतनी जटिल है कि यह राशि वापस मिलना संभव नहीं लगता। कारोबारियों का कहना है कि जीएसटी में दवाओं के लिए चार स्लैब को घटा कर दो करना चाहिए। दवाओं को इतने अधिक स्लैब में लाने पर इसकी बिलिंग में भी परेशानी होगी। इस कार्यशाला में अशोक डागा, अजय कुमार, रंजन साहू, सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा, दिलीप कुमार जालान आदि दवा व्यापारी शामिल हुए।