नई दिल्ली : स्वास्थ्य मंत्री को पत्र थैलीसीमिया नाम की बीमारी के लिए काम करने वाले एक समूह ने कहा है कि भारत में सुरक्षित ब्लड प्रैक्टिस शुरू करने की जरूरत है, जिससे संक्रमण रोका जा सके। इस समूह का कहना है कि सुरक्षित और अच्छी गुणवत्ता का रक्त देने में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं होनी चाहिए, जिससे थैलेसीमिया जैसी बीमारी के मरीजों को लाभ मिल सके।
थैलेसीमिया पेशेंट एडवोकेसी ग्रुप (टीपीएजी) ने इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में टीपीएजी ने अपील की है कि केंद्र की ओर से सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी की जाए, जिसमें न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग (NAT) टेक्नोलॉजी का प्रयोग करने पर विचार का निर्देश दिया जाए। समूह ने कहा है कि इस तकनीक के प्रयोग से संक्रमण के खतरे को कम किया जा सकेगा और इसे सरकारी अस्पतालों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
वर्तमान में ओडिशा और मध्य प्रदेश के अलावा जम्मू कश्मीर के अस्पतालों में NAT तकनीक उपलब्ध है। थैलेसीमिया पेशेंट एडवोकेसी ग्रुप ने इसे आधार बनाते हुए कहा है कि देश के सभी सरकारी अस्पतालों में न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग टेक्नोलॉजी का प्रयोग होना चाहिए।
इस समूह की अपील है कि सुरक्षित और गुणवत्ता वाले रक्त सभी को मिले, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को लिखे गए पत्र में टीपीएजी की सचिव अनुभा तनेजा मुखर्जी ने कहा है कि भारत में थैलेसीमिया व अन्य बीमारियों से भी जूझ रहे मरीजों के लिए सुरक्षित रक्त जरूरी है और यह एक तात्कालिक जरूरत है।
‘वन इंडिया वन ब्लड’ के कॉन्सेप्ट पर अनुभा तनेजा ने बताया कि भारत में ऐसे तमाम मरीज हैं जिन्हें रक्त की जरूरत है। इनकी सुरक्षा के मद्देनजर ब्लड बैंक में NAT तकनीक का प्रयोग जरूरी है। उन्होंने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में भारत में थैलेसीमिया के मरीज सबसे ज्यादा हैं। इनकी संख्या एक से डेढ़ लाख के बीच है। अनुभा खुद भी थैलेसीमिया पेशेंट हैं।
अनुभा तनेजा ने अपने पत्र में लिखा है कि NAT स्क्रीनिंग के बाद खून 99.99 फ़ीसदी सुरक्षित होने का दावा किया जा सकता है। बता दें कि थैलेसीमिया एक जेनेटिक बीमारी है जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होती है जिसके कारण रेड ब्लड सेल कम बनते हैं। इंसान के शरीर में आरबीसी ऑक्सीजन कैरी करते हैं।
पत्र में कई अध्ययनों के हवाले से लिखा गया है कि एनएटी तकनीक वायरल न्यूक्लिक एसिड वायरस को जल्दी डिटेक्ट करने में सक्षम है। इसकी तुलना में फिलहाल उपयोग किया जा रहा है सीरोलॉजी टेस्ट कम प्रभावी है। ऐसे में अगर ब्लड बैंकों में एनएटी तकनीक का उपयोग किया जाए तो संक्रमण के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार से बात करते हुए अनुभा तनेजा ने कहा, भारत में एनएटी की तत्काल जरूरत है। ब्लड बैंक के संदर्भ में यह एक गोल्ड स्टैंडर्ड है जो दुनिया भर में प्रयोग किया जा रहा है। इसे अमेरिका और यूरोपियन यूनियन में भी अप्रूव किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि भारत में कोरोना महामारी के दौरान खून की जरूरत पड़ने पर लोगों को संघर्ष करते देखा गया.
बकौल अनुभा तनेजा, विशेष रूप से लॉकडाउन के समय अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे। ब्लड ट्रांसफ्यूजन में परेशानियां हो रही थी। उन्होंने बताया कि थैलेसीमिया पीड़ित लोगों को हर महीने ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराना पड़ता है जिससे उनके शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बना रहे। उन्होंने कहा कि थैलेसीमिया मरीजों को सुरक्षित रक्त मुहैया कराना राइट्स ऑफ पर्संस विद डिसेबिलिटी कानून, 2016 के तहत भी आता है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।