जौनपुर। एचआईवी पॉजिटिव तीन हजार से अधिक मरीज दवा के लिए भटक रहे हैं। जिला अस्पताल में स्थापित एआरटी सेंटर पर पिछले 16 दिनों से दवा का स्टॉक खाली हो गया है। दवा की कमी के लिए जिम्मेदार लॉक डाउन में बड़ी संख्या में बाहर से आए मरीजों के कारण खपत बढ़ने को कारण बता रहे हैं। एक अन्य कारण पुरानी दवा बंद कर नई दवा शुरू किया जाना भी है।

इस दवा को बिना जांच नहीं दिया जा सकता और जिले में जांच के पर्याप्त साधन नहीं है। दरअसल लॉक डाउन के दौरान गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली के विभिन्न शहरों से साढ़े चार लाख लोग काम-धंधा बंद होने पर घर लौट आए थे। पूर्वांचल के अन्य जिलों की अपेक्षा जौनपुर की संख्या सर्वाधिक थी। इसमें एचआईवी संक्रमित लोग भी रहे। सामान्य तौर पर उनका उपचार संबंधित प्रांत और जिले के अस्पताल से चलता रहा, मगर घर आने के बाद उन्हें यहीं से दवा उपलब्ध कराने का निर्देश था।

लॉक डाउन के दौरान दवा की 40 फीसदी तक खपत बढ़ गई थी। इसके चलते पहले से मौजूद दवा का स्टॉक समय से पहले ही खत्म हो गया। बता दें कि जिले में एचआईवी पॉजिटिव के 3115 मरीजों की नियमित दवा चलती है। इन मरीजों के स्वास्थ्य के हिसाब से एआरटी सेंटर से एक या दो महीने की दवा दी जाती है। मरीजों को वैसे तो कई तरह की दवा चलती है लेकिन उनके शरीर में वायरस को कमजोर करने के लिए दी जाने वाली सबसे जरूरी दवा टीएलई का स्टॉक पिछले 16 दिनों से खत्म हो चुका है।

अब इसके स्थान आई नई दवा टीएलडी को तभी दिया जा सकता है, जब उनकी जांच रिपोर्ट आएगी। हैरानी की बात यह कि जिस गति से जांच रिपोर्ट आ रही है उससे जिले के सभी मरीजों की जांच पूरी होने में एक साल से भी अधिक समय लग सकता है। ऐसे में मरीज यह सोच कर परेशान हैं कि अगर उन्हें एक साल तक बिना दवा के रहना हुआ तो उनकी जान सांसत में पड़ सकती है।