बेतिया। स्वास्थ्य विभाग में 34 लाख के दवा घोटाले की विभागीय जांच के बाद अब कानूनी कार्यवाही शुरू हो गई है।  इस घोटाले से जुड़े सभी कर्मियों पर कानूनी कार्रवाई की तलवार लटक गई है। मामले में सिविल सर्जन कार्यालय के लिपिक सह क्रय लिपिक रामाशीष बैठा को पहले ही निलंबित किया जा चुका है। वहीं, अब जिला स्वास्थ्य समिति के लेखा प्रबंधक विनोद कुमार पर कानूनी कार्यवाही के लिए लिखा गया है। इस बारे में सिविल सर्जन डा. कृष्ण कुमार राय ने सचिव सह कार्यपालक निदेशक राज्य स्वास्थ्य समिति पटना को पत्र भी भेजा है। सिविल सर्जन के अनुसार एंटी डी इ युनॉयलब्यूलिन दवा की खरीद के लिए जिला लेखा प्रबंधक विनोद कुमार नेे 8 अक्टूबर 2013 को 500 वायल तथा 9 मार्च 2014 को 2000 वायल खरीद के लिए सप्लायर को लिखा था। जबकि राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार से दवा खरीदने की कांट्रेक्ट अवधि 31 मार्च 2013 तक ही निर्धारित थी। सिविल सर्जन ने स्वास्थ्य सचिव को लिखे अपने पत्र में कहा है कि निर्गत क्रयादेश में संदर्भित दवाओं की न्यूनतम अवसान अवधि 24 माह से कम अवधि वाली दवाओं की आपूर्ति प्राप्त नहीं की जानी थी। इसके साथ ही एंटी डी इ युनॉयलब्यूलिन दवा कांट्रेक्ट अवधि समाप्ति की तिथि 31 मार्च 2013 के बाद संचिका में प्रस्ताव तैयार कर आठ अक्टूबर 2013 एवं 9 मार्च 2014 को इसकी खरीद के लिए अपना हस्ताक्षर अंकित कर तत्कालीन सिविल सर्जन डा. गोपाल कृष्ण के हस्ताक्षर के उपरांत खरीद की गई। इसमें स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है कि दवा की एक्सपायरी का समय कम से कम 24 माह होना चाहिए। लेकिन, उक्त दवाओं की एक्सपायरी का समय एक वर्ष से कम होने के बावजूद उसकी आपूर्ति की गई। इसका भौतिक सत्यापन भी नहीं किया गया। हद तो यह है कि बिना आपूर्ति दर्ज कराए ही जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा तीन चेक के माध्यम से इसका भुगतान भी करवा दिया गया। उन्होंने इसकी उपयोगिता को देखते हुए कुल 2500 वायल के आकलन को भी संदिग्ध बताया है। यह दवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए खरीदना उचित नहीं था। इस कारण कुछ स्वास्थ्य केंद्रों में दवा एक्सपायर हो गई और सरकार को 33 लाख, 77 हजार 400 रुपये का नुकसान हुआ।