देहरादून। उत्तराखंड में दवाओं की खरीद को बनाई गई नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव काफी समय से लंबित चल रहा है। दरअसल, दवा खरीद को लेकर उठ रहे सवालों के बीच स्वास्थ्य महानिदेशालय ने एक प्रस्ताव शासन को भेजा था। इसमें दवाओं को उत्तराखंड अधिप्राप्ति नियमावली के तहत ही खरीदा जाना प्रस्तावित किया गया था। इस मामले में अभी तक अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। इस कारण अभी भी विभाग पुराने नियमों के आधार पर ही दवाएं खरीद रहा है।
प्रदेश में अभी चल रही दवा खरीद नीति में संशोधन की जरूरत महसूस की गई थी। नीति में कई खामियों की वजह से दवा खरीद में कई तरह की परेशानिया खड़ी हो गई थी। टेंडर के लिए कई ऐसी शर्ते शामिल की गई थीं, जिससे छोटे व स्थानीय सप्लायर इस कारोबार से बाहर हो गए थे। आरोप यह भी थे कि महकमे द्वारा दवाओं का परीक्षण करने के बाद अपने हिसाब से पसंदीदा कंपनी के माध्यम से इनकी खरीद की जाती है। ऐसे में कई बार इनकी गुणवत्ता पर सवाल उठाए गए।
इसे देखते हुए इस नीति को संशोधित करने का निर्णय लिया गया। इसके तहत पहले दवाओं का परीक्षण किया जाएगा। इसके बाद ही इनकी खरीद की जाएगी। इसके अलावा नीति में टर्नओवर की सीमा को लेकर भी संशोधन प्रस्तावित किया गया। मकसद यह कि स्थानीय कारोबारी को भी दवा सप्लाई करने का मौका मिल सके। इसके लिए एक मसौदा बनाकर शासन को भेजा गया। शासन में लंबे समय तक इसका परीक्षण चला।
जब तक इस पर कोई निर्णय लिया जाता, तब तक प्रदेश में लोकसभा चुनावों की आदर्श आचार संहिता लागू हो गई। तब से ही इस मसले पर कोई निर्णय नहीं हो पाया है। सूत्रों की मानें तो दवा खरीद को लेकर एक बार फिर नए सिरे से स्वास्थ्य महानिदेशालय से प्रस्ताव मंगाने की तैयारी चल रही है, जिसमें पुरानी नीति में पाई गई खामियों को दूर करने के सुझाव लिए जाएंगे और इसके बाद जरूरत पडऩे पर नीति में संशोधन किया जाएगा।