अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)। फार्मासिस्ट की अनिवार्यता पर मेडिकल स्टोर संचालकों ने अचानक चुप्पी साध ली है, क्योंकि लाइसेंस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का ‘साल्ट’ शामिल हो गया है। फुटकर दवा विक्रेताओं को थोक लाइसेंस जारी कर फार्मासिस्ट की अनिवार्यता से छूट दी जा रही है। मामले की जांच कराई जाए तो फर्जीवाड़ा सामने आ जाएगा।
तीन साल पहले तक एक ही फार्मासिस्ट के प्रमाण-पत्र पर कई-कई दुकानों के लाइसेंस व नवीनीकरण हो जाते थे। मगर, नई प्रक्रिया में ब्योरा ऑनलाइन होने से यह फर्जीवाड़ा खत्म हो गया है, क्योंकि एक से अधिक लाइसेंस के साथ प्रमाणपत्र लगाने पर कंप्यूटर तुरंत पकड़ लेता है। जिले में करीब 2500 दवा विक्रेता हैं। इनमें रिटेलर्स की संख्या ही 2000 से अधिक है। नई व्यवस्था में करीब 500 दवा विक्रेता फार्मासिस्ट का प्रमाण-पत्र जमा नहीं कर पाए। 40 से ज्यादा लाइसेंस निरस्त भी हुए। इसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन हुए। बाजार तक बंद किए गए। मगर, अचानक केमिस्टों ने चुप्पी साध ली।
जानकारी के अनुसार केमिस्टों ने औषधि विभाग से संरक्षण में फार्मासिस्ट की अनिवार्यता का तोड़ निकाल लिया है। 2018-19 व 2019-20 में जारी लाइसेंस व नवीनीकरणों की जांच की जाए तो बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आएगा। काफी संख्या में रिटेलर्स को थोक बिक्री के लाइसेंस जारी कर दिए हैं, ताकि फार्मासिस्ट का प्रमाण-पत्र न लगाना पड़े। यही वजह है कि फार्मासिस्ट की अनिवार्यता का विरोध अचानक बंद हो गया है। रिटेलर्स केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री उमेश श्रीवास्तव का कहना है कि ऐसी शिकायतें एसोसिएशन को भी मिली हैं कि औषधि विभाग से रिटेलर्स को थोक लाइसेंस दिए गए हंै। इस संबंध में जल्द ही बैठक बुलाई है। डीएम से शिकायत भी की जाएगी। अलीगढ़ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू का कहना है कि दो साल में फार्मासिस्ट की समस्या काफी कम हुई है। रिटेलर्स को थोक लाइसेंस की बात मेरे संज्ञान मेें नहीं हैं।