श्रीगंगानगर (राजस्थान)। अमेरिकी दवा प्रशासन (एफडीए) की स्वीकृति के बिना मरीजों को दवा देने की नीति का विरोध होने लगा है। डॉक्टरों का मानना है कि परीक्षण के अधिकार (राइट टू ट्राई) के चलते घातक बीमारियों से पीड़ित लोगों को एफडीए की अनुमति बिना दवाई देना घातक सिद्ध हो सकता है।

गौरतलब है कि अमेरिका में किसी भी दवा को उपयोग में देने से पहले उसे कई तरह के चिकित्सकीय परीक्षणों से गुजरना होता है। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) सारी प्रक्रिया को देखती है। एफडीए की मंजूरी मिलने पर ही संबंधित दवा कंपनी उसे सप्लाई करती है। तभी मरीज पर परीक्षण के लिए उक्त दवा दी जा सकती है। अब जो नई नीति लाई जा रही है, उससे एफडीए से किसी डॉक्टर को अनुमति लेने की जरूरत नहीं रहेगी। रोगी को सीधे दवा उपलब्ध कराई जा सकेगी। डॉक्टरी पेशे से जुड़े लोगों को चिंता है कि इस विधेयक से डॉक्टरों और दवा कंपनियों की भी जिम्मेदारी कम हो जाएगी और इन पर आंच नहीं आएगी। साथ ही विधेयक एफडीए द्वारा औषधियों की मंजूरी में रोक लगाने की दर में कमी लाएगा।

बताया जा रहा है कि इस विधेयक में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि मरीज को जरूरत होने पर दवा तत्काल उपलब्ध कराई जा सकेगी। उसे अनुमति के लिए रुकना नहीं होगा। जबकि वर्तमान में डॉक्टर को अनुमति की प्रतीक्षा करनी होती है। राइट टू ट्राई विधेयक पर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की एनर्जी एवं कॉमर्स समिति विचार कर रही है। करीब 300 मेडिकल विशेषज्ञों ने इस समिति से पत्र लिखकर कहा है कि इस तरह के विधेयक से एफडीए कमजोर होगा। वैसे भी एफडीए मरीजों के 99 फीसदी आवेदन को स्वीकृति देता ही है। पत्र में कहा गया है कि कुछ विशेष मामलों में ‘राइट टू ट्राय’ विधेयक सही हो सकता है, परंतु फिर भी ये तरीका दिशाभ्रमित करने वाला है। इससे फायदे के स्थान पर नुकसान हो सकता है। इस विधेयक से कमजोर मरीजों और उनके परिवारों को गलत उम्मीद जागेगी और यह उम्मीद एफडीए की घटती भूमिका की कीमत पर होगी।