नई दिल्ली। दवा बेचने को लेकर घमासान मचा दिखाई दे रहा है। ये घमासान पारम्परिक और ऑनलाइन दवा बेचने वालों के बीच में है। पारम्परिक दुकानदारों ने अपनी मांगे नहीं माने जाने पर बेमियादी हड़ताल की धमकी दी है। ये दुकानदार ऑनलाइन दवा कारोबारियों को मान्यता देने की सरकार की पहल से नाराज हैं। बता दें कि पारम्परिक दवा विक्रेता दुकान पर एक निश्चित इलाके में दवा बेचता है, जहां ग्राहक आते हैं और दवा खरीद ले जाते हैं। वहीं, ऑनलाइन कारोबार करने वाले यानी ई फार्मेसी है। एक ऐसी दुकान जो शहर के किसी भी कोने में लोगों के घर जाकर दवा पहुंचा आती है। वो भी सस्ते में और किसी भी समय।
पारम्परिक दुकानदारों का कहना है कि तकनीक को आधार बनाकर धंधा करने वालों ने उनके लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। वे दवाओं पर भारी छूट दे रहे हैं। वहीं ये भरोसा भी नहीं कि इन ई-फार्मेसी ने जो दवा पहुंचाई वो सही भी है या नहीं। सरकार भी ई-फार्मेसी के साथ खड़ी दिख रही है। दरअसल, परेशानी की जड़ सरकार की ओर से 28 अगस्त को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रुल्स 1945 के तहत जारी किए गए कायदे-कानून है, जिस पर संबंधित पक्षों की राय मांगी गयी है। मसौदे में उन नियमों का खाका खींचा गया है, जिसके तहत तय होगा कि कोई कैसे ई-फार्मेसी का काम शुरू कर सकता है। किस तरह से उसे पंजीकरण करना होगा और किस तरह से उन्हें दवा बेचनी होगी आदि। वहीं, ई-फार्मेसी से जुड़े लोगों का दावा है कि वह ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रुल्स 1945 की सभी शर्तों के आधार पर ही धंधा करते हैं। मसलन, डॉक्टर की पर्ची के बगैर शेड्यूल एच, एच-1 और एक्स की दवाएं नहीं बेचते। सभी बिक्री का रिकॉर्ड रखते हैं और अपने कर्मचारियों में फॉर्मासिस्ट भी रखे हुए हैं जो पर्ची की पड़ताल कर तय खुराक के मुताबिक ही दवा भेजते हैं।
सरकार का साफ कहना है कि इन नियमों को नहीं मानने वाली ई-फार्मेसी धंधा नहीं कर सकती हैं। वहीं, नए कायदे-कानून का मसौदा ई-कारोबारियों को सुव्यवस्थित करने की एक कोशिश भी बताया गया है। सवाल ये भी है कि एक ही दवा, एक ही ब्रांड की कीमत में पारम्परिक और ऑनलाइन दुकानों पर इतना अंतर क्यों? आमतौर पर ये धारणा है कि ऑनलाइन कारोबारियों की लागत कम होती है. लागत कम होने की कई वजह हैं, मसलन ज़्यादा बड़ी मात्रा में सीधे कम्पनियों से सौदा करना जिससे ज़्यादा डिस्काउंट मिल सके, दुकान के रख-रखाव का खर्च कम होना, वगैरह-वगैरह। पारंपरिक दुकानदारों का कहना है कि आज के दिन में भारी-भरकम छूट देने वाली ज्यादातर ई-कॉमर्स कम्पनियां घाटे में हैं। यानी अपना मुनाफा गंवाकर बाजार कब्जा करने की जुगत में लगी हैं। लगातार फंड आ रहा है, लिहाजा परेशानी की कोई बात नहीं। लेकिन दूसरी ओर जब धंधा ही नहीं होगा तो पारम्परिक दवा विक्रेताओं को अपनी दुकान बंद करनी होगी और उसके बाद ई-फार्मेसी आसानी से अपनी शर्तों के मुताबिक ही बाजार को चलाएंगी और मुनाफा कमाएंगी। अभी ई-फार्मेसी की बाजार हिस्सेदारी आधे फीसदी से भी कम है, लेकिन उनके कारोबार बढऩे की रफ्तार 100 फीसदी तक पहुंच गई है। यही वो डर है जिसने घमासान की आग में घी डालने का काम किया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दवा बेचने को लेकर दुकानदारों में मचा घमासान जल्द थमने वाला नहीं है।