नई दिल्ली। सेंट्रल ड्रग रेगुलेटर के देश में नकली दवाओं पर पूर्णतया रोक लगाने संबंधी प्रस्ताव में कमियां तलाशने और उसे बेहतर बनाने के लिए वर्किंग ग्रुप बनाया जा रहा है। इस मैकेनिज्म में यूनीक कोड्स का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव है। वर्किंग ग्रुप में फार्मास्युटिकल एसोसिएशन के प्रतिनिधि और सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन के मेंबर होंगे। यह ग्रुप अपने गठन के चार महीनों के भीतर समस्याओं और उनके  उपयुक्त समाधानों पर अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। इससे पहले ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने मीटिंग में ‘ट्रेस एंड ट्रैक’ मैकेनिज्म से जुड़े प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। प्रस्ताव के अनुसार टॉप 300 फार्मास्युटिकल ब्रांड्स के लेबल्स पर 14 डिजिट्स का एक नंबर प्रिंट किया जाएगा। हर स्ट्रिप और बॉटल पर यूनीक नंबर होंगे।

यह व्यवस्था लागू होने पर मरीज यह पता लगा सकेंगे कि जो दवाएं वे खरीद रहे हैं, वे असली हैं या नहीं। दवा की मार्केटिंग करने वाली कंपनियां लेबल्स पर एक नंबर देंगी, जिस पर मरीज टेक्स्ट मेसेज कर यह जानकारी हासिल कर सकेंगे। बड़ा मकसद यह है कि जालसाजों के मन में भय पैदा किया जाए और इंडियन फार्मा इंडस्ट्री की बेहतर छवि बनाई जाए। इसमें कहा गया कि इस ऑथेंटिकेशन सिस्टम को लागू करने से रेगुलेटरों पर काम का बोझ  बढ़ जाएगा। वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिसर्च के अनुसार कम इनकम वाले देशों के बाजारों में हर 10 मेडिकल प्रॉडक्ट में से एक घटिया या नकली होने की आशंका है। 2014-16 में देशभर में किए गए एक सर्वे में पाया गया था कि भारत में बेची जा रहीं करीब 3 पर्सेंट दवाएं घटिया थीं, जबकि करीब 0.023 पर्सेंट नकली थीं।