रोहतक : प्रदेश का इकलौता पीजीआईएमएस पूरा साल विवादों को लेकर चर्चा में बना रहा। यहां तक कि प्रबंधन कई मामलो को लेकर तो   सालभर सफाई देता रहा। शिशु चोरी मामला तो अभी भी पीजीआई के लिए गले की फांस बना हुआ है और स्वास्थ्य विभाग से लेकर सरकार तक इस मामले में किरकिरी का सामना कर चुके हैं। एमबीबीएस प्रवेश की काउंसलिंग को लेकर परीक्षार्थियों के परिजनों ने जहां प्रबंधन की कार्यशैली पर सवाल उठाए और यहां तक कि घूस लेने जैसे गंभीर आरोप भी लगाए। अक्टूबर माह निदेशक डॉ. राकेश गुप्ता की कुर्सी खाऊ साबित हुआ। साथ ही हेल्थ यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. ओपी कालरा के साथ कथित तौर पर हाथा पाई एवं दुव्र्यवहार की खबर खूब उछली।

वैसे 2017 की शुरआत यानी जनवरी माह से ही पीजीआई में डाक्टरों की कार्यशैली को लेकर विवाद शुरू हो गया था और इस माह में दो बार ईलाज में लापरवाही का आरोप लगा। जैसे-तैसे प्रबंधन ने स्थिति संभाली और भरोसा दिलाया कि आगे ऐसा नहीं होगा, लेकिन फरवरी माह में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने वेतनमान को लेकर प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कर्मचारियों ने हडताल की धमकी दी, जिन्हें मनाने के लिए प्रबंधन को खूब पसीना बहाना पडा। मामला यहीं नहीं रूका। डाक्टरों के आपसी मतभेद खुलकर सामने आ गए। इस दौरान डाक्टरों में भी गुटबाजी शुरू हो गई। पीजीआई में सही तालमेल रखने के लिए कुलपति डॉ. ओपी कालरा ने कई बार अलग-अलग बैठकें की और बीच का रस्ता निकाला। अभी मार्च माह शुरू ही हुआ था कि एक शिशु की मौत ने पीजीआई प्रबंधन पर सवाल खडे कर दिए। परिजनों ने जमकर हंगामा किया और डाक्टरों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी। यहीं नहीं प्रसूति विभाग में डिलवरी के दौरान महिला की मौत का मुद्दा भी छाया रहा।

अप्रैल माह में जो कुछ हुआ, उससे तो स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज को भी हस्तक्षेप करना पड़ा। गेस्ट्रो विभाग के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. प्रवीण मल्होत्रा को अपने ही संस्थान में सहयोगियों द्वारा काम करने से रोकने और उन्हें षड्यंत्र में फंसाने का गंभीर कारनाम सामने आया। इस मामले में पीजीआई निदेशक डॉ. राकेश गुप्ता समेत पांच लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी की धारा 420 समेत अन्य धाराओं में पुलिस ने मामला दर्ज किया। आरोपी निदेशक डॉ. गुप्ता समेत सभी पांच लोगों की गिरफ्ततारी की मांग को लेकर शहर के व्यापारी नेताओं, सामाजिक लोगों ने जनसमूह के साथ डॉ. प्रवीण मल्होत्रा के पक्ष में सहकारिता मंत्री मनीष ग्रोवर के घर के बाहर धरना दिया। यह अलग बात है कि आरोपियों की ऊंची पहुंच होने के कारण गिरफ्तारी से बचे रहे।

अभी यह मामला शांत नहीं हुआ था कि फोरेसिंक विभाग में डाक्टरों के विवाद का मामला सामने आया। इसी बीच मई माह में फिर से कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर हडताल पर उतर आए। जून और जुलाई में तो पीजीआई प्रबंधन सबसे अधिक चर्चाओं में रहा। 19 जुलाई को पीजीआई में एक डाक्टर के साथ मारपीट के मामले में नौ घंटे तक रेजीडेंट डाक्टर हडताल पर चले गए थे। अभी यह मामला चल ही रहा था कि तीस जुलाई को सेक्टर एक स्थित मकान में मिली बीडीएस की 337 उतर पुस्तिकाओं ने पीजीआई की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठा दिए। इसी तरह नवनियुक्तनर्सो के वेतन का मामला भी छाया रहा। बीच-बीच में सालभर कोर्ट केसों ने वैसे ही पीजीआई प्रबंधन के पसीने छुड़ाए रखे। फ्लू से पांच लोगों की मौत को लेकर पीजीआई को सरकार के सामने स्पष्टीकरण देना पड़ा।

अगस्त माह में हुई एमबीबीएस की प्रवेश काउंसलिंग को लेकर प्रबंधन पर फिर उंगलियां उठी। सिंतबर माह की शुरूआत में पीजीआई में हॉस्टलों के कमरों को लेकर विवाद हुआ। जिसे बाद में जैसे-तैसे निपटा लिया गया। दस सिंतबर को पीजीआई की सुरक्षा व्यवस्था पर एक बडा प्रश्रचिन्ह लगा और प्रसूति विभाग से नवजात शिशु चोरी हो गया, जिसका अभी तक कोई सुराग नहीं मिला। हालांकि इस मामले में डाक्टरों सहित 14 को आरोपी माना गया था, जिनके पोलिग्राफ टेस्ट भी होने है। इस मामले को लेकर डाक्टरों-नर्सों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच खूब गरमागर्मी रही। मामले को लेकर निदेशक डॉ. राकेश गुप्ता को इस्तीफा तक देना पड़ा। इसके अलावा ट्रामा सेंटर शुरू करने का दावा भी इस साल फ्लॉप ही रहा। पीजीआई हेल्थ यूनविर्सिटी के स्थापना दिवस पर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज से ट्रामा सेंटर का उद्घाटन कराने की प्लानिंग अव्यवस्थाओं के चलते धरी की धरी रह गई। साल खत्म होने को है लेकिन अब काम में तेजी दिखाई जा रही है। उम्मीद है कि प्रदेश के लोगों को नए साल में ट्रामा सेंटर और मदर चाइल्ड सेंटर की सौगात मिलेगी। पीजीआई को नए साल से काफी उम्मीदें है।