कोलकाता। पश्चिम बंगाल में एक फार्मा कंपनी ने 13 ऐसे युवकों को मेडिकल रिपे्रजेंटेटिव नियुक्त किया है, जिन्होंने लडक़ी के रूप में जन्म लिया था। दो महीनों की ट्रेनिंग के बाद अब ये सभी काम शुरू करने जा रहे हैं। जीवन में कई स्तरों पर चुनौतियों का सामना करने वाले ट्रांसजेंडर्स की यह सफलता अपने आप में मील का पत्थर है। कंपनी ने यह कदम अपनी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबलिटी के रूप में उठाया है। इन युवाओं में शामिल 35 साल के त्रिशान ने बताया कि पुरुष दिखना और पुरुष के तौर पर पहचाना जाना दोनों में मनोवैज्ञानिक स्तर पर बहुत अंतर है। पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर बोर्ड ने नौकरी पाने वाले इन सभी ट्रांसजेंडर्स के व्यवहार की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि संस्था कंपनी और कर्मचारियों के बीच एक सेतु की तरह काम करेगी। इन सभी कर्मचारियों को इस बात की भी ट्रेनिंग दी गई है कि वे बाकी लोगों को कैसे अपने साथ सहज महसूस कराएं। उन्होंने परिस्थितियों का सामना करने, अपनी पहचान नहीं छुपाने, लोगों के सवालों को सकारात्मक रूप में लेने के लिए भी तैयार किया गया है। ट्रांसजेंडर्स की अक्सर शिकायत रहती है कि उन्हें उनकी शारीरिक विशिष्टता की वजह से निशाना बनाया जाता है। पेशेवर तौर पर सफल कई ट्रांसजेंडरों ने बताया कि सरकारी नौकरियों में ट्रांसजेंडर अपनी जगह बना रहे हैं। लेकिन प्राइवेट सेक्टर में हालात अलग हैं। कॉर्पोरेट नौकरियों को सामाजिक स्वीकार्यता का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इन सेक्टर्स में ट्रांसजेंडर्स के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया गया।