रायपुर। प्रदेशभर में औषधि प्रतिष्ठानों में योग्यताधारी फार्मासिस्ट से ही औषधियों का विक्रय कराने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुला उल्लंघन हो रहा है। राजधानी समेत प्रदेशभर में कई जिलों के औषधि प्रतिष्ठान बिना फार्मासिस्ट गैर प्रशिक्षित लोगों के द्वारा संचालित हो रहे हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों को इसकी भनक लंबे समय हैं फिर भी सब कुछ जानते हुए उदासीन रवैया अपनाए हुए हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के नियंत्रक ने प्रदेश के सभी सहायक औषधि नियंत्रकों को सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए एक आदेश भी जारी किया है।
दरअसल खाद्य एवं औषधि प्रशासन नियंत्रक के केडी कुंजाम ने बताया कि नियमों के तहत जो औषधि प्रतिष्ठान नही चल रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई कार्रवाई की जाएगी। प्रदेश के सभी सहायक औषधि नियंत्रकों को निगरानी रखने व जांच के आदेश दिए गए हैं। बता दें कि इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन (आईपीए) छत्तीसगढ़ ब्रांच के पदाधिकारियों की बिलासपुर में बैठक हुई, जिसमें तीन सूत्रीय मांगों को लेकर 23 मार्च को सड़क पर उतरने का फैसला लिया गया है। प्रदेश सचिव राहुल वर्मा ने बताया कि फार्मासिस्टों के लिए 5 साल से सरकारी पद नही निकाले जा रहे हैं।
सरकारी पद निकाले जाने, कैडर निर्माण और बिना फार्मासिस्ट संचालित दुकानों को बंद कराए जाने की मांग को लेकर प्रदेशभर में प्रदर्शन किया जाएगा। प्रदेशभर में 18 हजार पंजीकृत फार्मासिस्ट हैं। उन्होंने बताया कि प्रदर्शन से पहले मांगों को लेकर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव समेत उच्च अधिकारियों से मुलाकात की जाएगी। तो वहीं आदेश में कहा गया है कि न्यायालय द्वारा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 एवं नियम 1945 के परिप्रेक्ष्य में औषधि प्रतिष्ठानों में योग्यताधारी फार्मासिस्ट से ही औषधि का विक्रय कराए जाने के निर्देश दिए गए हैं। नियंत्रक ने सहायक नियंत्रकों को औषधि निरीक्षकों से औषधि प्रतिष्ठानों की समय-समय पर निगरानी कराने के आदेश दिए हैं। आदेश जारी हुए करीब 20 दिन हो गए लेकिन अभी तक एक भी औषधि प्रतिष्ठानों में औषधि निरीक्षकों की टीम नही पहुंची है। इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश सचिव राहुल वर्मा का दावा है कि राजधानी समेत प्रदेश के करीब 80 फीसदी औषधि प्रतिष्ठान बिना फार्मासिस्ट के संचालित हो रहे हैं।
औषधि प्रतिष्ठान के अंदर दिवालों पर फार्मासिस्ट के पंजीयन सर्टिफिकेट टंगा रहता है लेकिन दवाएं देने के लिए गैर प्रशिक्षित व्यक्ति मौजूद रहता है। राज्य में 11 हजार से ज्यादा चिल्हर दुकानें हैं। रायपुर में ही एक हजार से ज्यादा दुकानें हैं। अधिकांश दवा दुकानें फार्मासिस्ट के पंजीयन सर्टिफिकेट को किराए पर लेकर चलाए जा रहे हैं। कानून के मुताबिक गैर फार्मासिस्ट द्वारा दवा डिस्पेन्स करने पर छह माह का कारावास का भी प्रावधान है। औषधि प्रतिष्ठान में गैर प्रशिक्षित लोगों को एलोपैथी दवाओं के डोज की जानकारी नहीं रहती है, लेकिन यह किसी मेडिकल प्रेक्टिशनर की भांति मनमर्जी से डोज बताते हुए लोगों को उपलब्ध करा देते हैं। लोगों को इन दवाओं के मनमाने डोज से तात्कालिक लाभ तो मिल जाता है लेकिन साइड इफैक्ट के घेरे में आ जाते हैं। मनमाने डोज से किडनी एंव लीवर खराब होने की संभावना होती है। कई दुकानों पर डॉक्टर के बिना पर्ची के दवाएं दे दी जाती है, जो काफी घातक होता है।