यमुनानगर। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए मास्क लगाया अनिवार्य किया गया है। इसकी मांग बढऩे से कीमतें भी आसमान छूने लगी हैं। हालांकि, मास्क व सैनिटाइजर मेडिकल डिवाइस में शामिल नहीं हैं। कोरोना बीमारी के नाम पर इनकी खूब कमाई की जा रही है। अब बाजार में पर्याप्त मात्रा में मास्क उपलब्ध हैं। सबसे अधिक कपड़े के मास्क प्रचलन में हैं। कुछ लोग मास्क तैयार कर मनमाने भाव में बेच रहे हैं। केमिस्ट एसोसिएशन ने इस पर विरोध जताया है। ऐसोसिएशन के अनुसार मास्क व सैनिटाइजर मेडिकल डिवाइस में शामिल नहीं है। जिस कारण कोई भी मास्क की बिक्री कर सकता है। मैटबलोन भी कपड़ा है। जब से मास्क की मांग बढ़ी है। इससे तैयार मास्क 20 से लेकर 80 रुपये तक है। इसमें फिल्टर के हिसाब से दाम तय होता है। जैसे यदि कोई मास्क चार प्लाई का है, तो उसके अलग रेट हैं और छह प्लाई का है, तो उसका अलग रेट है। अब कोई भी मास्क तैयार कर सकता है, क्योंकि यह मेडिकल डिवाइस में नहीं है। सर्जिकल मास्क पूरी तरह से सुरक्षित है। इनमें कुछ वन टाइम मास्क होते हैं। सरकार ने इनका रेट दस रुपये प्रति मास्क रखा है। इसके अलावा कुछ लोग खादी, टेरीकॉट और अन्य प्रकार के कपड़े से भी मास्क तैयार कर रहे हैं। केमिस्ट एसोसिएशन के प्रवक्ता अमित जैन ने बताया कि मास्क, सैनिटाइजर और पीपीई किट को मेडिकल डिवाइस घोषित करने की मांग की गई है। उम्मीद है कि इस संबंध में जल्द ही कोई गाइडलाइन तय होगी। इससे मास्क व अन्य उपकरणों का रेट निर्धारित होगा। फिर वह गुणवत्ता की कसौटी पर भी खरा होगा। इस समय तैयार किए जा रहे मास्क की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है। सिविल सर्जन डा. विजय दहिया का कहना है कि आमतौर पर कपड़े का मास्क ही पहनना चाहिए। मास्क का प्रयोग ही हमें बीमारी से बचाएगा। इसे रोजाना धोकर प्रेस करने के बाद दोबारा प्रयोग में ला सकते हैं। यह आरामदायक भी है।