नई दिल्ली। टेटनस के इंजेक्शन के साथ-साथ कई और जरूरी दवाओं की बाजार में शॉर्टेज हो गई है। इसका कारण दवा निर्माता कंपनियों द्वारा इनका उत्पादन बंद करना बताया जा रहा है। कंपनियों ने लागत बढऩे के कारण इन दवाओं व इंजेक्शन को बनाना बंद कर दिया है। यह भी खबर है कि जिन दवा दुकानदारों के पास इसका पुराना स्टॉक बल्क में है, वे इसे तिगुने दाम में बेच रहे हैं। टेटनस टॉक्सॉयड का इस्तेमाल किसी दुर्घटना में चोट लगने पर या फिर लोहे से जख्म होने पर ज्यादा होता है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसे गर्भवतियों व बच्चों को भी लगाया जाता है। यूपी में थोक बाजार में टेटनेस इंजेक्शन 6 रुपए का मिलता है लेकिन रिटेलर 1 इंजेक्शन के 15 रुपये तक वसूल रहे हैं। टेटनस के अलावा जो अन्य जरूरी टैबलेट हैं, उनकी किल्लत होने पर दुकानदार फायदा उठा रहे हैं। वे डेढ़ से दो रुपये की 1 गोली की कई गुना कीमत वसूल कर ग्राहकों को ठग रहे हैं। कारण पूछने पर कहते हैं कि कंपनियों ने इन इंजेक्शनों की सप्लाई बंद कर दी है। दिल्ली ड्रग ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दर्शन मित्तल ने कहा कि बीते साल टेटनस की दवा को ड्रग प्राइस कंट्रोल के दायरे में लाया गया था। दवा कंपनियों को अलर्ट किया गया था कि वे इस दवा को 5 रुपए से अधिक की कीमत पर नहीं बेच सकती है, लेकिन कंपनियों का कहना था कि इसकी लागत ही 5 रुपए के आसपास बैठती है इसलिए वे इस बंदिश के बाद इसका उत्पादन नहीं कर पाएंगी। इसका उत्पादन करने पर उन्हें नुकसान होगा इसलिए कई दवा उत्पादन कंपनियों ने इसे बनाना बंद कर दिया। मार्केट में सप्लाई घटने का यह बहुत बड़ा कारण है। बीते साल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को पत्र लिखकर टेटनस टॉक्सॉयड वैक्सीन को टेटनस और एडल्ट डिपथिरिया वैक्सीन से रिप्लेस करने का निर्देश दिया था। मंत्रालय ने कहा था कि इस वैक्सीन की सप्लाई जल्द शुरू होगी। इसके लिए हरेक राज्य के नेशनल हेल्थ मिशन डायरेक्टरों को अलग से ताकीद की गई थी।