अम्बाला, बृजेंद्र मल्होत्रा। देशभर में पुलिस, डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, सामाजिक संस्थाओं के साथ रिटेलरों ने मरीजों व उनके तीमारदारों की प्रथम पंक्ति में तैनात हो देश सेवा की अनूठी मिसाल समाज के सामने रखी। भले ही कोई भी रोगी रिटेलर के पास दवा लेने आया उसे दवा जरूरतानुसार उपलब्ध करवाई। वह भी पूर्व की भांति बिना लालच के। जागरूक रिटेलरों ने रोगियों को अवैध दवा भंडारण पर ज्ञानवर्धन भी किया कि यदि आप 4 माह की दवा अपने घर मे इक_ी कर लेंगे तो ऐसा भी हो सकता है कि किसी को दवा से कई दिनों तक वंचित ही रहना पड़े जिससे वह बेवजह बीमारी की गिरफ्त में चला जायेगा। कुछ तो समझे, कइयों ने सीधा रुख होलसेल दवा व्यपारियों की तरफ कर लिया और भंडारन मनमुताबिक कर ही लिया। ऐसे में यहां होलसेलरों ने दवा रिटेल रेट पर की वहीं ड्रग्स एन्ड कॉस्मेटिक के नियमों की खुलेआम धज्जियां भी उड़ाई बात सार्वजनिक भी हुई औषधि प्रशासन के संज्ञान में भी आई परन्तु कोरोना वायरस के कहर की गति को भुनाने कुकुरमुत्ते की तरह उभरे सेनेटाइजर, मास्क, इंफ्लारेड थर्मामीटर , पीपीई किट विक्रेताओं की धरपकड़ करने में दिन रात एक कर दिया। काफी हद तक इन पर अंकुश लगाने में सफलता भी पाई परन्तु तब तक कईयों ने मनपूर्वक कमाई कर धन कुबेर बनने के सपने को साकार भी कर लिया। पिसा तो रिटेलर ही जिसकी सुध जिला स्तर से राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर किसी ने भी नहीं ली। राष्ट्रीय कार्यालय ने तो होलसेलरों के हक ने दवा निर्माता कम्पनियों से बिलों की अदायगी में अतिरिक्त छूट हेतु पत्र लिखा और दवा निर्माताओं द्वारा तुररन्त सहर्ष स्वीकार कर भी लिया किसी ने 10 दिन किसी ने 15 दिनों की देरी से बिल भुकतान की सुविधा प्रदान की ऐसे में होलसेलरों के दोनों हाथों में लड्डू आ गए रिटेलरों को दी जाने वाली कम्पनी की स्कीमें भी बच गई , ग्राहकों से सीधे केश काउंटर सेल भी हो गई तो इसी तर्ज पर रिटेलरों को कम्पनी द्वारा दी जाने वाली स्कीमों से वंचित रखा गया। वहीं एक्सपायरी दवाओं को लेने से भी साफ मना कर दिया और तो और कई राज्यों से पता चला कि रिटेलरों द्वारा कम्पनी स्कीमों के बारे सटीक जानकारी दी और अपना हक लेने की बात की तो रिटेलर को दवा देने से ही साफ मना कर दिया। सन फार्मा सहित कई दवा निर्माताओं कीे फील्ड स्टाफ ने तो कई रिटेलरों को फोन कर कम्पनी स्कीमों के बारे सही जानकारी ली कि स्कीमें मिल रही हैं या नही परन्तु न जाने सटीक जानकारियां कम्पनी तक पहुंची या स्टॉकिस्टों की टेबल पर ही दफन हो गई। यंू तो राष्ट्रीय कार्यालय व दवा निर्माताओं के मध्य एक्सपायरी ब्रेकेज को लेकर सभी इकरारों की मियाद समाप्त हो चुकी है फिर भी कई कम्पनियों ने एक्सपायरी ब्रेकेज हेतु रिटेलरों को अतिरिक्त समय वाला पत्र भी लिखा जिसे रिटेलरों तक न पहुंच पाए, ऐसे प्रयास भी किये गए परन्तु कहीं न कहीं से पत्र लीक हुए तो होलसेलरों ने इन पत्रों की सत्यता से अनभिज्ञता जाहिर करनी शुरू कर दी। रिटेलर जो इतनी विकट परिस्थितियों में भी अपनी व अपने परिवार की चिंता किये बिना कैसे समाज स्व्स्थ रहे की राह प्रशस्त करते रहे जिसे न तो स्थानीय प्रशासनों ने सराहा न राज्य व केंद्रीय सरकार के कर्णधारों ने आखिर कब तक रिटेलर उपेक्षा का पात्र बनता रहेगा? कब जागेगा स्थानीय, राज्य केंद्रीय प्रशासन व औषधि प्रशासन ?