भीनमाल (राजस्थान)। निजी अस्पतालों में मलेरिया बुखार की जांच के लिए रैपिड डायग्नोस्टिक किट फॉर मलेरिया (एंटी बॉडी बेस्ड आरडी किट) का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है। जबकि डीसीजीआई (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) ने मलेरिया किट के इस्तेमाल को अमान्य करार दे रखा है। इससे मरीजों की जांच रिपोर्ट पर संदेह रहता है। गौरतलब है कि रैपिड डायग्नोस्टिक किट फॉर मलेरिया किट से ज्यादातर मरीजों की रिपोर्ट गलत आने के कारण डीसीजीआई ने मार्च माह में प्रतिबंध लगाया था। इसके लिए मलेरिया बुखार के लक्षणों वाले मरीजों की जांच स्लाइड से ही करना मान्य है।
 मलेरिया किट से की जाने वाली जांच को स्वास्थ्य विभाग की ओर से अमान्य बताया गया है क्योंकि इसमें अक्सर जांच रिपोर्ट सही नहीं आती है। शहर के राजकीय चिकित्सालय को छोडक़र शहरी व ग्रामीण इलाकों में मलेरिया बुखार की जांच के लिए मलेरिया किट का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। इधर, चिकित्सा विभाग की उदासीनता के चलते गांवों में नीम हकीम इसी किट का प्रयोग कर मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इस किट को अमान्य कारार दिए जाने के बावजूद निजी अस्पतालों में लैब टेक्नीशियन अपने समय की बचत करने व आसान तरीका होने के कारण इसका इस्तेमाल करते हैं। वहीं, कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में एवं स्लाइड जांच की जानकारी के अभाव में मलेरिया किट का प्रयोग कर रहे हैं।  जांच के दौरान मलेरिया किट के अधिक प्रयोग किए जाने का सबसे बड़ा कारण पैथोलॉजिस्ट को परीक्षणों में आने वाली कम लागत के साथ किट का आसानी से उपलब्ध होना है। इस किट से रक्त जांच करना भी आसान होता है। इससे बिना योग्यताधारी लैब टेक्नीशियन भी जांच कर लेते हंै। जांच में सामने आया है कि एक मलेरिया किट का मूल्य 30 रुपए है, जबकि लैबोरेट्री संचालक मरीजों से 120 से 150 रुपए वसूलते हंै।