रांची।
एक तरफ कोरोना और ब्लैक फंगस ने लोगों का जीना हराम कर रखा है तो वहीँ दूसरी तरफ लगातार दवाओ के बढ़ रहे दामों से मरीज के परिजन काफी परेशान हो चुके है। गौरतलब है कि कोरोना संकट में एलोपैथी ही नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक व होमियोपैथी कंपनियों ने भी आपदा को अवसर बना डाला है। ऐसे में आम लोग के लिए इलाज कराना महंगा साबित होने लगा है। मरीजों और उनके परिजनों पर दोहरी मार पड़ रही है। जिससे इलाज कराना मुश्किल होता जा रहा है। जानकारी के अनुसार, इम्युनिटी बढ़ानेवाले खाद्य पदार्थ और अन्य दवाओं की कीमत अचानक बढ़ा दी गयी।

आयुर्वेदिक कंपनी डाबर, बैद्यनाथ और पतंजलि व अन्य कंपनियों ने पांच से सात फीसदी तक की वृद्धि कर दी। वहीं छोटे और स्थानीय निर्माताओं ने भी 45 से 60 फीसदी तक कीमत बढ़ा दी। होमियोपैथी दवाओं की कीमत ब्रांडेड कंपनियों ने पांच से 10 फीसदी तक बढ़ायी। होमियोपैथी की कोलकाता निर्मित दवाओं को 70 फीसदी तक कीमत बढ़ाकर बाजार में उतार दिया।

आयुर्वेद दवाओं की कीमत में बेतहाशा वृद्धि की :
कोरोना काल में इम्युनिटी पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया, जिसमें जड़ी-बूटी व प्राकृतिक सामान को शामिल कर उत्पाद तैयार किया गया। डिमांड बढ़ गयी. डिमांड इतनी बढ़ गयी कि ब्रांडेड कंपनियां कीमतों में वृद्धि करने के बाद भी मांग पूरी नहीं कर पा रही थी। ऐसे में लोकल स्तर पर काढ़ा व च्यवनप्राश का उत्पादन होना शुरू हो गया। आयुर्वेदिक कफ सीरप दवा श्वासरी प्रवाही 50 से 80 रुपये तक मिलने लगा। वहीं अश्वगंधा कैप्सूल की कीमत 65 से 95 रुपये तक बढ़ गयी है। दिव्य धारा की कीमत 30 से 50 रुपये तक हो गयी।

छह ड्रग इंस्पेक्टर हैं नियुक्त :
आयुर्वेदिक व होमियोपैथिक दवाएं आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंदर आती हैं, लेकिन एनपीपीए के प्राइस कंट्राेल में ये नहीं हैं। च्यवनप्राश ड्रग में आता है, लेकिन इसे बेचने के लिए लाइसेेंस की जरूरत नहीं है। राज्य औषधि निदेशालय ने राजधानी के छह ड्रग इंस्पेक्टर को आयुर्वेदिक दवाओं पर निगरानी का जिम्मा दिया है।

जिला प्रशासन द्वारा भी इस पर निगरानी रखी जाती है। हालांकि औषधि निरीक्षक जांच रिपोर्ट तैयार कर सकते हैं, लेकिन जिला प्रशासन या केंद्र सरकार ही इस पर कार्रवाई कर सकती है।

आयुर्वेदिक व होमियोपैथी उत्पाद भी ड्रग की श्रेणी में आते हैं, लेकिन दर की निगरानी का जिम्मा एनपीपीए के पास नहीं है। उत्पाद व दर पर निगरानी रखने का जिम्मा छह औषधि निरीक्षकों को दिया गया है। अगर कीमत का मामला है तो जांच करायी जायेगी।

सुरेंद्र प्रसाद, संयुक्त निदेशक औषधि

च्यवनप्राश की कीमताें में सात फीसदी की वृद्धि
च्यवनप्राश की कीमत कंपनियों ने पांच से सात फीसदी तक बढ़ायी है. डाबर, पतंजलि, बैद्यनाथ, झंडू कंपनियों के उत्पाद की कीमत भी पिछले एक साल में बढ़ गयी है। च्यवनप्राश में 15 से 20 रुपये प्रति किलो वृद्धि दर्ज की गयी। पहले जिस च्यवनप्राश की कीमत 330 रुपये थी, वह बढ़कर 349 तक पहुंच गयी है।  वहीं शुगर फ्री की कीमत में भी 20 रुपये तक बढ़ोतरी की गयी है। च्यवनप्राश भी ड्रग की श्रेणी में आता है। ऐसे मेें निगरानी ड्रग इंस्पेक्टर के अधिकार क्षेत्र में आता है।

होमियोपैथी दवा एस्पीडोस्पर्मा की डिमांड बढ़ी तो कीमत बढ़ायी
होमियोपैथी की दवा एस्पीडोस्पर्मा की डिमांड कोरोना काल में अचानक बढ़ गयी। कोरोना के गंभीर संक्रमित, जिन्हें सांस की समस्या थी, उनके लिए होमियोपैथी डॉक्टर एस्पीडोस्पर्मा का परामर्श करने लगे। डिमांड बढ़ते ही बाजार से यह दवा गायब हो गयी। ब्रांडेड कंपनियों की यह दवा 130-140 रुपये (30 एमएल) की थी, जिसमें पांच से सात रुपये बढ़ायी। वहीं कोलकाता की निर्माता कंपनियाें ने 80 से 90% तक कीमत बढ़ा दी। लोकल कंपनी की यह दवा पहले 100 रुपये मिलती थी, लेकिन कंपनियों ने इसे बढ़ाकर 190 कर दिया।