नई दिल्ली। लिवर फेल्योर की बीमारी से पीड़ित रोगियों में संक्रमण को रोका जा सकेगा। राजधानी दिल्ली स्थित यकृत व पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) ने इस रोग के इलाज में नई राह दिखाई है। अमेरिका में आयोजित सम्मेलन में आइएलबीएस के क्लीनिकल शोध पत्र को सर्वश्रेष्ठ फेलो रिसर्च पुरस्कार के लिए चुना गया है। एएएसएलडी (अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लिवर डिजीज) ने वाशिंगटन में इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में दुनियाभर के 9500 डॉक्टर शामिल हुए और 2250 शोध पत्र स्वीकार किए गए थे। आइएलबीएस के निदेशक डॉ. एसके सरीन के अनुसार संस्थान के डॉक्टरों ने लिवर फेल्योर के मरीज में संक्रमण रोकने का बेहतर इलाज दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। शोधार्थी डॉ. आनंद वी कुलकर्णी को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिलना संस्थान के लिए बड़ी उपलब्धि है।

डॉ. कुलकर्णी ने बताया कि लिवर फेल्योर के मरीजों में संक्रमण होना बड़ी समस्या है। ऐसे मरीजों में संक्रमण रोकने के लिए डॉ. एसके सरीन के नेतृत्व में शोध किया गया। इस शोध में लिवर फेल्योर के 30-30 मरीजों के तीन समूह बनाए गए। पहले समूह के मरीज को पांच दिन नस के माध्यम से ओमेगा-3 फैटी एसिड दवा व दूसरे समूह के मरीजों को ओमेगा-6 फैटी एसिड दवा दी गई। तीसरे समूह के मरीजों को इनमें से कोई दवाएं नहीं दी गईं। शोध में यह देखा गया कि जिन मरीजों को दवाएं नहीं दी गईं, उनमें से करीब 65 फीसद मरीज संक्रमण से पीडि़त हुए। वहीं, जिन मरीजों को ओमेगा तीन दी गई थी, उनमें से सिर्फ तीन मरीजों को ही संक्रमण हुआ। अन्य मरीजों को संक्रमण नहीं हुआ। शोध में ओमेगा-3 संक्रमण रोकने में ओमेगा-6 से ज्यादा असरदार पाया गया। पहली बार लिवर फेल्योर के मरीजों पर इसका इस्तेमाल किया गया।