भोपाल। प्रदेशभर में लोकल परचेज के नाम पर सीएमएचओ और सिविल सर्जन ने अस्पतालों में महंगी दवाइयां खरीदने में खासी दिलचस्पी दिखाई है। इसमें ज्यादातर दवाइयां सरकार द्वारा तय की गई 361 अत्यावश्यक दवाओं की सूची से बाहर की हैं। खास बात यह है कि ये कुछ चुनिंदा कंपनियों की ही दवाइयां हैं। इसकी भनक लगते ही स्वास्थ्य विभाग ने दवाई खरीदने के तरीके का ऑडिट शुरू करवा दिया है। इसमें यह भी पता किया जा रहा है कि ये दवाएं किन कंपनियों की हैं। इनसे कितने मरीजों को फायदा हुआ।
सरकारी अस्पतालों के लिए खरीदी जाने वाली दवाइयों को लेकर कई घोटाले सामने आने के बाद नई औषधि क्रय नीति 2009 बनाई गई थी। इस नीति में विकेंद्रीकृत मॉडल अपनाया गया। इसके लिए मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेस कॉर्पोरेशन (एमपीपीएचएससीएल) का गठन किया गया। कॉर्पोरेशन ही टेंडर निकालकर दवा, सर्जिकल सामाग्री और उपकरणों की खरीदी के लिए अनुबंध दरें तय करता है। ये एमपी औषधि पोर्टल पर दर्ज है, जिसके हिसाब से खरीदी और भुगतान तय होता है। गौरतलब है कि दवा नीति में जिला अस्पताल, सिविल अस्पताल, कम्युनिटी अस्पताल, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए खरीदी में बजट के 20 प्रतिशत राशि लोकल परचेस के लिए तय है। ये अधिकार सीएमएचओ-सिविल सर्जन को होते हैं।
एमपीपीएचएससीएल के एमडी एस. धनराजू ने कहा कि जिलों में जरूरत के हिसाब से ईडीएल और नॉन ईडीएल दवाइयां खरीदी जा सकती हैं। पुरानी गलतियों से सबक लेकर हमने 2018-2019 के लिए नया एक्शन प्लान बनाया है। अब जरूरत के हिसाब से 3 महीने पहले से खरीदी करनी होगी। तीन पदों पर जिम्मेदार अफसरों के हस्ताक्षर होंगे।